प्रकृति का यह कोप इतने पर भी नहीं थमा और 26 जुलाई 2005 में मुंबई की असंयमित बाढ़ आँसूओं का सैलाब लेकर आई। इस बाढ़ ने मुंबई के घर-घर में बेबसी की छाप छोड़ी। प्रकृति की क्रूरता को सहन करना मानवता की बेबसी हो सकती है। मगर मनुष्य की बर्बरता को बर्दाश्त करना बेबसी नहीं कमजोरी है।
भारत की सुंदर धरा पर ना जाने किसने रोपी है दरिंदगी की फसल? आए दिन के बम ब्लास्ट से धरती रक्तरंजित हो रही है। 26 मई 2007 में गोवाहाटी में हुए ब्लास्ट ने सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं 26 जुलाई 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट ने प्रशासन की नींद उड़ा दी।
इस ब्लास्ट के बाद देश के अन्य हिस्सों में जिस सतर्कता और सक्रियता की जरूरत थी वह निश्चित रूप से नहीं हुई। परिणाम हम सबके सामने है एक और 26/11। मुंबई हमले में सैकड़ों लोगों की नृशंस हत्या ने हर भारतवासी को छलनी कर दिया। देश के कर्मठ सिपाही, पुलिस अधिकारी खिलौनों की तरह हमारे सामने नष्ट कर दिए गए।
इन 26 तारीखों के खूनी इतिहास ने आशंकित कर दिया है हर मन को। कहीं फिर किसी 26 को कोई स्याह दिन हमारे विश्वास को ना लूट लें। अंधविश्वास की बात ना करें तब भी सावधानी के संकेत तो देती ही है 26 तारीख। काश, कोई 26 शुभता लेकर आए गणतंत्र दिवस की तरह।