भाजपा 2010 : जीत और मुद्दों की सौगात

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भाजपा का उत्साह और मनोबल बढ़ाने के लिए यह गुजरता साल बिहार के रूप में शानदार जीत के तोहफे के साथ उसे संप्रग शासन के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए 2-जी स्पेक्ट्रम सहित भ्रष्टाचार के कई मुद्दे दे गया।

वर्ष 2004 में सत्ता से बाहर होने के बाद से मुद्दाविहीन नजर आ रही भाजपा को अचानक संप्रग सरकार को घेरने के कई मामले मिल गए और उसमें नई जान सी आ गई है। इसका पूरा लाभ उठाते हुए उसने भ्रष्टाचार के कई मामलों की जेपीसी से जाँच कराने की माँग पर संसद के शीतकालीन सत्र को पूरी तरह ठप कर दिया। इतने सालों में पहली बार मुख्य विपक्षी दल आक्रामक और सत्ताधारी कांग्रेस बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं।

बिहार में वहाँ के मुख्य सहयोगी दल जदयू के साथ न न सिर्फ सत्ता में बने रहने, बल्कि विधानसभा चुनाव में पहले से भी शानदार प्रदर्शन करने से उसका मनोबल सातवें आसमान को छूने लगा है और उसे लग रहा है कि केन्द्र में लौटने के उसके रास्ते फिर से साफ हो रहे हैं।

बिहार के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपने उम्मीदवारों की जीत और गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में अपने सौ से भी अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों की अप्रत्याशित विजय से पार्टी अति उत्साहित है। उसका मानना है कि मुसलमानों में अब वह अछूत नहीं रही और देश में उसके वोट का आधार बढ़ने का यह दूरगामी परिणामों वाला संकेत है।

पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इस घटनाक्रम पर कहा कि मुस्लिम और ईसाई समुदाय वोट बैंक की राजनीति के भ्रम से मुक्त हो चुके हैं और उन्होंने भाजपा की विकास की राजनीति को स्वीकार कर लिया है। यह बदलाव न न केवल भाजपा के प्रति लोगों के समर्थन, बल्कि कांग्रेस के प्रति उनके गुस्से को भी दर्शाता है।

यह साल भाजपा के कुछ पूर्व नेताओं की पार्टी में वापसी का साल भी रहा। वरिष्ठ नेता जसवंतसिंह पार्टी में लौट चुके हैं और तेज तर्रार संन्यासिन नेता उमा भारती की वापसी की सभी बाधाएँ दूर की जा चुकी हैं।

इन उत्साहवर्धक बातों के साथ गुज़रते साल में भाजपा को कुछ किरकिरियों का भी सामना करना पड़ा। कर्नाटक के रूप में दक्षिण भारत में अपने अकेले के बलबूते बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में बनी भाजपा की पहली सरकार पूरे साल अस्थिरता के हिचकोले खाती रही।

येदियुरप्पा के आँखे दिखाने पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को मुख्यमत्री पद से उन्हें हटाने की अपनी योजना से पीछे हटना पड़ा। लेकिन ऐसा करते हुए संप्रग शासन के खिलाफ भ्रष्टाचार के विरूद्ध छेड़ी गई उसकी मुहिम को बड़ा नैतिक धक्का लगा। इससे कांग्रेस को उस पर ‘दोहरा मापदंड’ अपनाने का आरोप लगाने के पलटवार का मौका मिला।

इस साल पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी की जुबान भी बार-बार फिसलने से भाजपा को झेंप का सामना करना पड़ा। एक बार उन्होंने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और सपा सुप्रीमो मुलायमसिंह को कुत्ते की उपमा दे डाली तो अन्य अवसर पर कांग्रेसी नेताओं से सवाल कर बैठे कि संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु को क्या उन लोगों ने अपनी बेटी दे रखी है।

उधर बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान वहा ँ के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और विवादास्पद युवा नेता वरूण गाँधी के प्रचार में नहीं आने देने जैसा कड़ुवा घूँ ट भाजपा को पीने पर मजबूर किया। यही नहीं उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ भी संयुक्त प्रचार करने से इनकार कर दिया।

इस दौरान भाजपा के भीतर का प्रभुत्व संघर्ष भी सार्वजनिक हो गया जब पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने पार्टी के भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में बढ़ाई जा रही नरेन्द्र मोदी की दावेदारी को पंक्चर करते कह डाला कि मोदी का जादू हर जगह नहीं चलता। बदले में मोदी ने सुषमा के प्रभाव का राज्य माने जाने वाले कर्नाटक के अखबारों में विज्ञापन छपवाया जिसमें लिखा था नरेन्द्रभाई भीड़ को आकर्षित करने वालों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

लोकसभा में कटौती प्रस्ताव पर हुए मतदान में संप्रग सरकार के पक्ष में झामुमो नेता शिबू सारेने द्वारा मतदान करने के लिए झारखंड की उनकी सरकार से समर्थन वापस लेने के चार महीने बाद ही पार्टी ने उनके समर्थन से राज्य में फिर से सरकार बनाई। लेकिन ऐसा करते समय भाजपा का अंतर्कलह भी सामने आ गया और इस फैसले से नाराज आडवाणी अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित नहीं हुए। आडवाणी सोरेन की पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाने के खिलाफ थे।

गडकरी की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन के भी अपनी जुबान पर काबू नहीं रख पाने के कारण भाजपा को फजीहत का सामना करना पड़ा। सुदर्शन ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को कथित रूप से सीआईए का एजेंट बताया था और यह आरोप भी लगाया था कि वह अपने पति राजीव गाँधी तथा उनकी माँ इंदिरा गाँधी की हत्या की साजिश में शामिल थीं।

पार्टी ने इस सम्मानित नेता सुदर्शन के बयान से अपने को अलग करते हुए कहा कि सोनिया सत्तारूढ़ गठबंधन की अध्यक्ष हैं और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई भारतीय नेता को वह सम्मान मिलना चाहिए जिसकी वह हकदार हैं।

अयोध्या स्वामित्व से जुड़े मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का भाजपा ने पूरी तरह स्वागत किया और पार्टी मुख्यालय में पटाखे छोड़ कर तथा मिठाइयाँ बाँटकर उसकी खुशी मनाई गई।

राम मंदिर निर्माण का राजनीतिक आंदोलन चलाने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता आडवाणी ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा कि इससे भव्य राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। अदालत ने राम मंदिर निर्माण करने के हिन्दुओं के अधिकार को स्वीकार किया है। यह अलग बात है कि बाद में मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिन्दू पक्षों ने भी निर्णय से असंतोष जताते हुए उसके खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा दिया है। (भाषा)

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