महिला पहलवान साक्षी मलिक की प्रोफाइल

Webdunia
बचपन में हवाई जहाज में बैठने का सपना देखने से लेकर ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने तक हरियाणा की पहलवान साक्षी मलिक ने काफी लंबा सफर तय करके अपना नाम देश के खेल इतिहास में दर्ज करा लिया।
रोहतक के पास मोखरा गांव के एक परिवार में जन्मीं साक्षी ने बचपन में कबड्डी और क्रिकेट खेला लेकिन कुश्ती उनका पसंदीदा खेल बन गया। उनके माता-पिता या उनको भी उस समय इल्म नहीं रहा होगा कि एक दिन वह ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनेगी।
 
साक्षी ने पदक जीतने के बाद कहा, मुझे नहीं पता था कि ओलंपिक क्या होता है। मैं इसलिए  खिलाड़ी बनना चाहती थी ताकि हवाई जहाज में बैठ सकूं। यदि आप भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं तो हवाई जहाज में यात्रा कर सकते हैं। उनके बड़े भाई का नाम चैम्पियन क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के नाम पर रखा गया था। उनसे दो साल बड़ा सचिन उन्‍हें क्रिकेट खेलने के लिए कहता लेकिन उनका जवाब ना होता। वे हवा में उड़ते हवाई जहाज ही देखती रहतीं।
 
साक्षी ने कहा, मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया। जब मैं ने कांस्य पदक जीतने के बाद उनसे बात की तो वे खुशी के मारे रोने लगे। मैंने कहा कि यह जश्न मनाने का समय है। जीत के बाद साक्षी ने तिरंगा लपेटा और उसके कोच कुलदीप मलिक ने उसे उठा लिया। दोनों ने पूरे हाल का चक्कर लगाया और दर्शकों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया।
 
उन्‍होंने कहा, मेरे लिए  यह सपना सच होने जैसा था। मैंने सोचा था कि ऐसे ही जश्न मनाऊंगी। साक्षी के लिए  सबसे कठिन समय वह था जब वह ग्लास्गो में राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने के लिए  जूझती रही। 
 
उन्‍होंने कहा, उस समय सभी पदक जीत रहे थे और इतना दबाव था कि पदक के बिना घर लौटना मुश्किल था। यहां मुझ पर उतना दबाव नहीं था। मैंने सोचा कि हार गए तो क्या हो जाएगा लेकिन जीत गए तो क्या हो जाएगा। मैंने बिना दबाव के खेला।
 
छुपे रूस्तम की तरह पदक जीतने वाली साक्षी ने स्वीकार किया कि अब उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल जाएगी। उन्होंने कहा, मुझे पता है कि मेरी जिंदगी बदल गई है। अभी नजर नहीं आ रहा लेकिन घर लौटने के बाद सब कुछ बदल जाएगा। दिन-रात का बदलाव आने वाला है। 
 
रोहतक से रियो तक के 12 साल के कठिनाई भरे सफर में साक्षी अक्सर फोगाट बहनों की परछाई में दबी हुई नजर आईं। उन्होंने कहा, यह अजीब था। बुल्गारिया और स्पेन में शिविर में सभी फोगाट थे और मैं अकेली मलिक लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। गीता दीदी ने ही हमें 2012 में राह दिखाई थी। उन्होंने भारत के लिए पदक जीते और मुझे उनसे प्रेरणा मिली। 
 
साक्षी ने कहा, राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतकर लौटने पर हर कोई मेरे पीछे था, जिससे मैं सो भी नहीं सकी। जब भी सोने जाती तो मेरा भाई या मां कहते कि उठ जा, तुझे इंटरव्यू देना है। लोग इंतजार कर रहे हैं लेकिन मैंने इसका मजा लिया। हर किसी को यह मौका नहीं मिलता। वे रोज 500 उठक-बैठक लगाती हैं और कड़ा अभ्‍यास करती हैं लेकिन फिलहाल अभ्‍यास छोड़कर वे अपने पसंदीदा आलू-पराठे और कढ़ी-चावल खाएंगी।
 
उन्होंने कहा, लग रहा है कि मैं ने बरसों से आलू-पराठे और कढ़ी-चावल नहीं खाए। मैं ज्यादातर तरल और काबरेहाइड्रेट रहित खाना खा रही थीं, लेकिन अब नहीं। उन्‍हें फिल्मों या दोस्तों के साथ घूमने का शौक नहीं है और अब वे घर जाकर खूब सोना और परिवार के साथ समय बिताना चाहती हैं। (भाषा)
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