आओ इश्क की बातें कर लें

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विजय कुमार सप्पत्त ी

आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!

लबों पर कोई लफ्ज़ न रह जाए, खामोशी जहाँ खामोश हो जाए ;
सारे तूफान जहाँ थम जाए, जहाँ समंदर आकाश बन जाए।
तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले!!!

तुम अपनी आँखों में मुझे समां लेना, मैं अपनी साँसों में तुम्हें भर लूँ,
ऐसी बस्ती में ले चलो, जहाँ, हमारे दरमियाँ कोई वजूद न रह जाए!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!

कोई क्या दीवारें बनाएगा, हमने अपनी दुनिया बसा ली है,
जहाँ हम और खुदा हो, उसे हमने मोहब्बत का आशियाँ नाम दिया है!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!

मैं दरवेश हूँ तेरी जन्नत का, रिश्तों की क्या कोई बातें करे,
किसी ने हमारा रिश्ता पूछा, मैंने दुनिया के रंगों से तेरी माँग भर दी
तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!

आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें कर लें!!!
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