इस मौसम में ...

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जय श्री राय

इस मौसम में...
अलस आकाश की
नीली पलकों पर,
स्वप्न की आवाजाही-सी
जो है,
वही शायद आज
उतर आई है -
आँखों में अनायास
नि:शब्द तंद्रा की
श्यामल छाँव बनकर...

मधु की धार कह रही है
निरंतर,
शिराओं में बहती हुई -
प्यार की अंखुआने का
शायद यही मौसम है ...
तभी वो हवा में जादू है!
... और टोना नैन में
लौट रहा है तुम्हारा
तिलस्म भी
देहलता में गंध भरे
बौर बनकर...

सच,
आज एक उमर के बाद,
सारे कोलाहल के साथ
रख देना चाहता हूँ
उठाकर कहीं,
और फुर्सत के झूले में
लेटकर-
पढ़ना चाहता हूँ,
गुनगुनी धूप के
मीठे रेश में,
वही प्यार की
खूबसूरत कहानी
जो कभ ी हमारी-तुम्हारी
जिंदग ी हु आ करत ी थी...!
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