एहसास...

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- रोहित जैन

जब से मैंने वो हँसी सा पैकर देखा है
झूमता गाता हुआ हर मंज़र देखा है

राह में मिलने वालों से लेते हैं अपनी ही खबर
भूले अपना घर जब से उसका घर देखा है

फूलों में भी अब देखो इक नई सी रंगत आई है
बागों ने भी शायद रूप-समंदर देखा है

इश्क़ में चैन जो पाया हमने और कहीं नहीं पाया
वरना हमने भी मस्जिद और मंदर देखा है

सच ही कहती है दुनिया ‍के इश्क़ में नींद नहीं आती
हमने भी वो रातजगे का मंज़र देखा है

जिनकी बात सुना करते थे हम हर इक अफ़साने में
हमने भी उन एहसासों को छूकर देखा है।
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