काश, तुम आ जाते

Webdunia
मंगलवार, 2 नवंबर 2010 (18:13 IST)
फाल्गुनी

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दिन भर की तपी हुई छत
मुझ पर बरसती रही टप-टप
तुम्हारी गीली यादें,
काश, तुम आ जाते।

दिन भर की थकी हवा
मुझमें सरकती रही जरा-जरा
तुम्हारी रसीली बातें,
काश, तुम आ जाते।

अमराई पर देखी बहकी हुई कोयल
बजती रही मेरी पायल
तुम्हारा नाम गाते-गाते
काश, तुम आ जाते।

सेमल के कोमल फूलों का
मिला संदेसा शूलों सा
तुम रूक गए आते-आते
काश, तुम आ जाते।

महकी मन में पकी निंबौरी
तरसी मेरी बाँहे गोरी-गोरी
तुम्हारा साथ पाते-पाते,
काश, तुम आ जाते।
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