तुम्हारी आँखों के करीब

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- प्रेमरंजन अनिमेष

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टूटे तारों की धूल
चोट से पड़ा थक्का
काजल रूठा हुआ

पलकों की परछाइयाँ हैं ये
दिए तले का अँधेरा

गहरी सोच की आँच
जागे स्वप्न का दंश
स्मृति की पंखुड़ियाँ कुम्हलाई
सियाही लेखनी से ढलकी हुई ...

तुम्हारी आँखों के करीब
रहना चाहा था
पर इस तरह तो नहीं।

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