तुम थी उस याद में

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विजय कुमार सप्पत्ती

कल अचानक ही एक याद ने रास्ता रोक लिया;
कहने लगी ... मुझे भूल गए? कैसे?
मैं तो तुम्हारी सबसे बड़ी निधि हूँ मेरे दोस्त!!!

मैंने देखा तो उस याद पर वक्त की धूल और दुनिया के जाले,
दोनों ने अपनी शिकस्त जमाई हुई थी;
मैंने अपने आँसुओं से उस याद को साफ किया तो देखा कि;
तुम थी उस याद में!!!

मेरे साथ, एक अजनबी शहर में, मेरी बाँहों में
कुल जहान की खुशियाँ समेटे हुए;

और भी कुछ था, देखा तो एक मौन था,
कुछ आँसू थे, उखड़ी हुई साँसें थी;
मेरा नाम था और सुनो जानां, तुम्हारा भी नाम था..

हम मिले और जुदा हो गए ...
शायद फिर मिलने के लिए ...
शायद फिर जुदा होने के लिए ...

जिंदगी की परिभाषा;
जैसे हम सोचते हैं... वैसी नहीं है...

प्रेम बलिदान माँगता है और हम दे रहे हैं ...
कितनी बातें थी... कितनी यादें थीं...
मैं निशब्द हूँ और मेरी आँखें ही सब कुछ कह रही हैं ...
बहुत कुछ... शब्दों से परे ...

मौन के काल-पट पर आँसुओं से लिखते हुए...
सुनो जानां, क्या तुम्हारे भी आँसू बह रहे हैं...
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