तेरे जाने के बाद

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वीरेंद्र मिश्र

तेरे जाने के बाद रहा मैं जीवित
मेरे जाने के बाद गीत रह जाएगा
मैं नहीं कह सका था जो, वह कह जाएगा।

उछलेगी कोई गीत-लहर, संगीत-लहर
चीत्कारों-हाहाकारों के अंदर से ही
किलकारी भर जन्मेगा शिशु-सा एक शहर
विध्वंसों के अनजान किसी खंडहर से ही
उससे पहले संभवत: मेरे सम्मुख
मेरे सपनों का राजमहल ढह जाएगा
अवशेष धरोहर का अंचल लहराएगा।

हर यादगार टूटन में तेरी छवि होगी
तेरे दुख में होगा मेरी रचना का क्षण
तू एक अशांत नदी-सी बहती जाएगी
तूफानों में होगा मेरा प्रत्यावर्तन
निश्चित अप्रतिहत तेज समय-धारा में
असमर्थ व्यर्थ कूड़ा करकट बह जाएगा
अँजुरी में पावन गंगाजल रह जाएग ा।
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