प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें

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हरिशंकर अग्रवाल

बहुत प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे बादल बरसते हैं
धरती पर
मैं क्यों नहीं कर पाता तुम्हें
इतना प्यार।

हवा, जैसे भर देती हैं हँसी
पेड़ की नस-नस में
क्यों नहीं दे पाता स्पर्श तुम्हें
उस प्रकार।

फूल चटख जाते हैं
अपनी खुशबू के साथ
मैं क्यों व्यक्त नहीं कर पाता
ऐसा प्यार।

दरअसल, हमने प्यार करने की
दो जगह चुनी है।
बादल, हवा, फूल, स्पर्श-गंध
अलग से नहीं पहचाने जा सकते
ये सब घुल-मिल गए हैं
हमारे घर में
इसलिए दिखाई नहीं देता
अलग से हमारा प्यार।
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