प्रेम-कविता - टूटते रिश्ते

WD
- आलोक वार्ष्णेय
 
रिश्ते भले बने हो भाव से, 
पर होते मानो ख्बाब से...
जो भाव ख़त्म होने लग जाए 
टूट जाए रिश्ते झनाक से...
शुरू-शुरू में प्रीति भले हो,
प्रेम प्यार की रीति भले हो ...
 

समय गुजरता ज्यूं जाता है, 
भाव उतरता ही जाता है....
कल तक जो रिश्ते थे प्रभात,
समय संग हुए संध्याकाल से...
जो भाव ख़त्म होने लग जाए,
टूट जाए रिश्ते झनाक से ....
शेष सुहाना कुछ रहा नहीं है,
प्रेम बेगाना लगता अब....
प्रिय-हमदर्दी में भी भाव नहीं है,
सुर बिखरे कोई राग नहीं है..
कल तक जो थी प्यार की बातें,
आज बने सब जी जंजाल से....
जो भाव खत्म होने लग जाए,
टूट जाए रिश्ते झनाक से....
जब भी कोई दुःख होता तो,
दूजे से कहते थे अक्सर...
आज कोई जो भाव नहीं है,
निकल रहे एक दूजे से बचकर....
फिर भी कुछ खंडित अवशेष है,
जो कहते अब भी,हम हैं आपके....
पर जो भाव ख़त्म होने लग जाए, 
टूट जाए रिश्ते झनाक से......
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