बस तेरी प्रतीक्षा में

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विवेक मिश्र 'अनंत'

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बस तेरी प्रतीक्षा में, गुजार दी जिंदगी हमने।
आप जो आए नहीं, उजाड़ ली जिंदगी हमने।
सब्र की सीमाएँ थी, हम प्रतीक्षा करते कब तक।
कागजों को स्याहियों से, हम भरा करते कब तक।

आपने ना भुलाने की, हमसे कसम ले डाली थी।
छोड़ कर जाना नहीं, ये बात भी उसमे डाली थी।
फिर आपके भूल जाने से, जिंदगी मेरी खाली थी।
छोड़ दी मैंने उसे, क्यों करनी उसकी रखवाली थी।

वादा निभाया मैंने और, लाज बच गई तेरी भी।
अगले जन्म में मिलने की, आस बच गई मेरी भी।
मुक्त मैं करता हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से।
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से।
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