बहुत बची हूँ मैं

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फाल्गुन ी

बहुत बची हूँ मैं
तुम्हारी यादों से
आज अचानक
वो सामने आ खड़ी हुई तो
मैंने अवश होकर
द्वार खोल दिया
हृदय का,
बस इसी वक्त
तुम्हारी यादें
रूठकर चली गईं
बिल्कुल तुम्हारी तरह
इस वक्त मैं
भरी कलम और रिक्त कागज
लिए बैठी
सोच रही हूँ
क्या लिखूँ
तुम और तुम्हारी यादों के बारे में
बगैर किसी
अपराध के दोनों जब
लौट गए मेरे द्वारे से
---------
2. प्यार
समुद्र तट पर
रेत से लिखा शब्द नहीं
जो संकटों की लहरों से बह जाए
यह तो वह समंदर है
जो किनारे पर खड़े संकटों को बहा देता है
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