ले चल प्यार की नगरिया

गायत्री शर्मा
NDND
जब भी रूठती थी मैं
तो मनाते थे तुम
अपने हाथों से
इन जुल्फों को
सजाते थे तुम
अब रूठी हूँ तो
न आए तुम


कहाँ हो तुम
कुछ पता नहीं
हमने प्यार किया है
कोई गुनाह नहीं
गुँजती है तेरी आवाज
मेरे कानों में
आज भी कैद है
वो मंजर
इन फिजाओं में

हर कोई मिला यहाँ
पर न मिला
तेरे जैसा कोई
तेरे सपनों में
मैं हर दिन, हर रात
रहती हूँ खोई-खोई

अब और ना सता मुझको
करती हूँ याद तुझको
प्यार की नगरिया में
फिर से ले चल मुझको।

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