सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूँ

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रिश्ते को
जड़ से उखाड़कर
फेंक देना मुश्किल है
काट देना सहज है बहुत
जड़ें तो रहती है
आत्मा की जमीन में
और इसी में बचा रहता है
रिश्ते का खंडित अंश
जो व्यथित होकर
अपने अस्तित्व के लिए
चीखता है
पुकारता है कि
कोई इसे
पुनर्जीवित कर
खड़ा कर दे
और यकीन मानो कि
मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूँ
तुमसे टूटे हुए रिश्ते के
खंडित टुकड़े की
मर्मांतक चीख को नहीं
क्या तुममें भी
कहीं कोई टुकड़ा
शेष बचा है....?

सिर्फ एक शब्द में प्यार ? से ज्यादा कुछ नहीं।
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