प्रेम कविता :: ज़िंदगी गज़ल बन गई...

राकेशधर द्विवेदी
ज़िंदगी गज़ल बन गई
आप जरा मुस्कुराइए
किसी नज़्म की बोल बन
ओठों पर छा जाइए। 


 
आपका यूं मुस्कुराना
दिल को भी लुभाता है
ज़ुल्फों का यूं ही लहराना
सपनों में है आपको बुलाता।
 
देखिए जरा आप तो मुड़कर
गीत बनके गुनगुनाइए
चांद बनके निकला करें ज़िंदगी में
ईद बनकर आप छा जाइए। 
 
ज़िंदगी गज़ल बन गई
आप जरा मुस्कुराइए
मेरे गीतों को तो जरा
आप ओंठों पर लाइए।
 
फूलों की महक बनकर
दिल में उतर जाइए
ज़िंदगी गज़ल बन गई
आप जरा मुस्कुराइए।
 
तु्म्हारी ज़ुल्फों के साये में
दिल करता है खो जाऊं
किसी कविता की पंक्ति बन
तुम्हारे ओंठों पे आ जाऊं। 
 
जो दिल की हसरत थी
वो ज़बां पर न आ पाई
ज़िंदगी गज़ल बन गई
आप जरा मुस्कुराइए।
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