Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

प्रेम कविता : एक दिल को कितने घाव चाहिए

Advertiesment
हमें फॉलो करें प्रेम कविता : एक दिल को कितने घाव चाहिए

WD Feature Desk

, बुधवार, 12 फ़रवरी 2025 (16:09 IST)
- नवीन रांगियाल
 
मैं जितनी देहों को छूता हूं
दुनिया में उतनी याददाश्त पैदा करता हूं
 
जितनी बार छूता हूं देह
उतने ही हाथ उग आते हैं
उतनी ही उंगलियां खिल जाती हैं
 
मेरी सारी आंखें रह जाती हैं दुनिया में अधूरी
समय के पास जमा हो चुकी अनगिनत नज़रों को
कोई अनजान आकर धकेल देता है अंधेरे में
 
सारे स्पर्श गुम हो जाते हैं धीमे-धीमे
मैं हर बार देह में एक नई गंध को देखता हूं
 
नमक को याद बनाकर अपने रुमाल में रखता हूं 
 
प्रतीक्षा करते हुए बहुत सारे रास्ते बनाता हूं
कई सारी गालियां ईज़ाद करता हूं
 
मेरी दुनिया में कितने दरवाज़ें और खिड़कियां हैं
बेहिसाब छतें भी
 
बादल फिर आते हैं धोखे से
फिर से घिरती हैं घटाएं
 
फूल, हवा, खुशबू और प्रतीक्षाएं दोहराते हैं
फिर आते हैं
फिर से आते हैं सब
फिर से एक गुबार उठता है
एक आसमान उड़ता जाता है ऊपर
नीले दुप्पटे उड़ते हैं हवा में
कितनी ही दुनियाएं पुकारती हैं मुझे अपनी तरफ़
कितने ही हाथ इशारा करते हैं
कितनी ही बाहें बुलाती हैं
एक आदमी के दिल को कितने घाव चाहिए
कितनी याददाश्त चाहिए 
 
फिर भी इस दुनिया में, मैं एक पूरा आदमी नहीं 
मैं बहुत सारे टुकड़े हूं
 
जितनी बार मिलता हूं तुमसे

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

प्रेम कविता : मुझे कुछ कहना है