वेलेंटाइन कविता : निश्छल प्रेम की परिभाषा

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रोचिका शर्मा
 
निश्छल प्रेम की परिभाषा हो,
या किसी कवि की कविता।  
स्थिर झील का पानी हो,
या सतत, सलिल, सरिता।  
चमकीली किरण उषा की,
या चाँद की शीतल चांदनी।  
मेघ मल्हार किसी का हो तुम,
या किसी राग की रागिनी।  
नित सोच-सोच तुम्हें मैं,समझ नहीं पाता हूं।  
अनमना सा रहता हूं, दीवाना हुआ जाता हूं।  


 
खत लिखना चाहूं लेकिन, खत लिखना भी ना आए।  
इजहारे मुहब्बत करने में, शब्दकोष रिक्त हो जाए।   
फूलों के गुलदस्ते में, दिल अपना भिजवाता हूं।  
इस प्रेम मास के प्रेम दिवस पर, इज़हार किए देता हूं।  
अपना लो या ठुकरा दो,  कभी शिकवा ना करूंगा,
निश्च्छल प्रेम है, मरते दम तक, तुम्हें ही प्यार करूंगा। 
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