कल रात, रात बैठी रही खामोश

फाल्गुनी

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कल रात
ना रात सोई
ना चाँद सोया
ना सो सके नटखट सितारे
कल रात जागती रही
तुम्हारी यादों की कोमल कतारें।

कल रात,
रातरानी की खुशबू
हरसिंगार के सफेद-केसरिया फूल
च ुभाते रहे शूल।

कल रात आँसूओं को मैंने
निकाल दिया उनके घर से
वे बेघर डोलते रहे गालों पर।
बुलाता रहा मुझे
आँगन का नीम
करते हुए सर-सर।

कल रात
याद आई
तुम्हारी एक बात
‍ कि अब कभी नहीं बिछड़ेंग े,
और कल ही रात
याद आया मुझे
तुम्हारा तीखा स्वर
अब कभी मत मिलना मुझे।

कल रात
एक वादा, मैंने भी किया रात से
जब तुम आओगी तो
नहीं याद करूँगी किसी को,
पर कल रात,
रात बैठी रही खामोश
और करती रही याद
मेरे साथ किसी को।

कल रात
रात और मैं दोनों जागते रहे
अपने अतीत के पीछे बेकार भागते हु ए।
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