तुम बिन सावन सूना लगता है

विरह गीत

Webdunia
शशीन्द्र जलधारी

ND
ND
कहाँ गए ओ बादल तुम बिन, सावन सूना लगता है
साजन-सजनी दोनों का ही, तन-मन सारा जलता है।।

कोयल है खामोश और,
पपीहा भी है चुप।
पंछी सारे गुमसुम बैठे,
सावन का ये कैसा रूप।
सूने बाग-बगीचों में अब,
वो मेला नहीं भरता है।
कहाँ गए ओ बादल तुम बिन,
सावन सूना लगता है।

प्यासा है तन और मन,
मुरझाया वन-उपवन।
बिजुरी और बदरवा को,
तरसे सबके नयन।

नाचता नहीं मयूर,
और नहीं इठलाता है।
कहाँ गए ओ बादल तुम बिन,
सावन सूना लगता है।।

गोरियों को इंतजार,
सावन के सेरों का।
फूल जोहते बाट, तितलियों,
और भँवरों का।
पेड़ों के कंधों पर
अब यौवन नहीं झूलता है,
कहाँ गए ओ बादल तुम बिन,
सावन सूना लगता है।।

विरह की अग्नि ने छीना,
प्रियतम का सुख-चैन।
कोटे नहीं कटते हैं,
सावन के दिन-रैन।
उल्लास नहीं है जीवन में,
सब रीता-रीता सा लगता है।
कहाँ गए ओ बादल तुम बिन,
सावन सूना लगता है।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

चिंता करने का भी तय करें टाइम, एंजाइटी होगी मिनटों में दूर

आपकी रोज की ये 5 हैबिट्स कम कर सकती हैं हार्ट अटैक का रिस्क, जानिए इनके बारे में

कमजोर आंखों के लिए आज से शुरू कर दें इन योगासनों का अभ्यास

पीसफुल लाइफ जीना चाहते हैं तो दिमाग को शांत रखने से करें शुरुआत, रोज अपनाएं ये 6 सबसे इजी आदतें

हवाई जहाज के इंजन में क्यों डाला जाता है जिंदा मुर्गा? जानिए क्या होता है चिकन गन टेस्ट

सभी देखें

नवीनतम

गोलाकार ही क्यों होती हैं Airplane की खिड़कियां? दिलचस्प है इसका साइंस

इन 7 लोगों को नहीं खाना चाहिए अचार, जानिए कारण

हिन्दी कविता : योग, जीवन का संगीत

योग को लोक से जोड़ने का श्रेय गुरु गोरखनाथ को

क्या सच में छींकते समय रुक जाती है दिल की धड़कन?