तुममें खोकर शांत रहता हूँ

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सौमित्र सक्सेना

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मैंने तुम्हें कभी

हिलते हुए नहीं देखा है

उस वक्त भी

जब तुम

चित्र से बाहर होती हो

बहुत ठहरी हुई सी

जगह लगती है मुझे

तुम्हारे चेहरे की सतह

मुझे

सोचना नहीं पड़ता है

अपनी देह खोजने के लिए

देखना भी नहीं पड़ता है

इधर-उधर बेचैनी में

प्रतीक्षा के तनाव के साथ----

मैं अमूर्त हो जाता हूँ

तुममें खोकर

फिर शांत रहता हूँ

घाटी की गोद मे पड़े

एक गोल सफेद पत्थर सा

नदी की हल्की झिल्ली में तर-बतर

ठण्डा

ध्यानमग्न

और गतिमान।
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