प्यार में डूबी स्त्री

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अल्पना मिश्र

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सहेजती, संभालती इस क्षण को
कैसे उठाए, कहाँ रखे ...

इसी के बारे में सोच-सोच कर
वर्षों अपने आप में मुस्कुराई थी
ऐसा होगा वह...
वैसा होगा वह...

तो वही चला आया था दबे पाँव
प्यार में डूबी स्त्री
यह भी सोचती रही वर्षों
कि अनिश्चितता में जागे तो
निश्चित से हों उसके तकिये के नीचे
डायरी, पासबुक, शेयरों के कागज, चाभी...

कहाँ समझ पाई थी तब
उसी एक क्षण के मोह में
चला जाएगा वर्षों की मेहनत से पाया
सारतत्व
डायरी के शब्दों का आत्ममंथन
पासबुक की सुरक्षा
शेयरों का उत्साह...

प्यार में डूबी स्त्री
अनिश्चितता में जागी है कब से
कब से झाड़ू-पोछा, चूल्हा-चौका करती
बर्तन खनखनाती
बच्चों के पीछे दौड़ती
मोटापा घटाती
कपड़े फटकती...
फिर अनंत इंतजार में छटपटाती

उसी एक क्षण को
पकड़ लेने की कोशिश में निढाल है
चाभी का खोखला जिस्म लटका है

कमर से...
कहीं निकल पड़ने की तड़प लिए
दरवाजे तक आकर लौट रही है स्त्री

सुनो, प्यार में डूबी स्त्रियो!
अगर यही है प्यार
तो दूर ही भली तुम प्यार से।
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