प्यार, मेरे लिए तुम हो

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फाल्गुनी

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प्यार, ए क शब्द भर होता
तो पोंछ देती उसे
अपने जीवन के कागज से,
प्यार, होता अगर कोई पत्ता
झरा देती उसे
अपने मन की क्यारी से
प्यार, होता जो एक गीत,
भूल चुकी होती मैं उसे
उम्र के सोलहवें साल में गुनगुनाकर,

मगर, सच तो यह है कि
प्यार तुम हो,
तुम!
और तुम्हें
ना अपने जीवन से पोंछ सकती हूँ,
ना झरा सकती हूँ
मन की क्यारी से,
ना भूल सकती हूँ
बस एक बार गुनगुनाकर,
क्योंकि ओ मेरे विश्वास,
प्यार मेरे लिए तुम हो साक्षात,
सदा आसपास,
बनकर एक प्यास।
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