यादों की बारीक किरचें

स्मृति आदित्य
दिल की कोमल धरा पर धंसी हुई है
तुम्हारी यादों की किरचें
और रिस रहा है उनसे बीते वक्त का लहू,
कितना शहद था वह वक्त
जो आज तुम्हारी बेवफाई से रक्त-सा लग रहा है। 
 
 
तुम लौटकर आ सकते थे 
मगर वह तुमने चाहा नहीं 
मैं आगे बढ़ जाना चाहती थी 
मगर यह मुझसे हुआ नहीं। 
 
तुम्हारी यादों की 
बहुत बारीक किरचें है 
दुखती हैं 
पर निकल नहीं पाती 
तुमने कहा तो कोशिश भी की। 
 
किरचें दिल से निकलती हैं तो 
अंगुलियों में लग जाती है 
कहां आसान है 
इन्हें निकाल पाना 
निकल भी गई तो कहां जी पाऊंगी
तुम्हारी यादों के बिना। 
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