पश्चिमी जगत के नेताओं और उनकी गुप्तचर सेवाओं को संदेह होने लगा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिमाग़ी तौर पर ठीक-ठाक नहीं हैं। उनके निर्णय ही असंगत नहीं लगते, उनका हाव-भाव भी बदला हुआ है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कई बार फ़ोन कर चुके हैं। 28 फ़रवरी को हुई बातचीत क़रीब डेढ़ घंटे तक चली। माक्रों ने पुतिन को समझाने की कोशिश की कि यूक्रेन में उनके हस्तक्षेप से यूरोप ही नहीं, पूरी दुनिया का क्या कुछ दांव पर लग गया है। किंतु परिणाम पिछली बारों की तरह ढाक के तीन पात ही रहा। पुतिन टस से मस नहीं हुए। माक्रों के एक सलाहकार ने फ्रांसीसी मीडिया को बताया कि दोनों के बीच विचारों का आदानप्रदान "काफ़ी सख़्त" रहा।
28 फ़रवरी वाली टेलीफ़ोन वार्ता से ठीक तीन सप्ताह पूर्व, 7 फ़रवरी को, फ्रांसीसी राष्ट्रपति मॉस्को में थे। पूरे छह घंटे तक पुतिन से बात की। कोई परिणाम नहीं निकला। माक्रों ने बाद में कहा कि बातचीत उपयोगी तो थी, पर मतभेद भी बने हुए हैं। उनके साथ के लोगों में से एक ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि "तीन साल पहले की तुलना में आज के पुतिन बहुत बदल चुके हैं।" यूरोपीय संसद के फ्रांस के ही एक सांसद बेर्ना गुएता को पुतिन "पैरानोईड" यानी मिथ्या संदेह से ग्रस्त लगते हैं, तो चेक गणराज्य के लंबे समय तक उनके समर्थक रहे राष्ट्रपति मिलोश ज़ेमान उन्हें "पगला गया" मानने लगे हैं।
दोस्त भी महसूस कर रहे हैं पुतिन में बदलाव : 55 लाख की आबादी वाले तटस्थ देश फिनलैंड की रूस के साथ 1,340 किलोमीटर लंबी साझी सीमा है। वहां के राष्ट्रपति साउली निईनिस्तो और पुतिन के बीच वर्षों से बड़े मधुर संबंध रहे हैं। दोनों कई बार मिल चुके हैं। दो दोस्तों की तरह एक-दूसरे को अक्सर फ़ोन किया करते थे। निईनिस्तो ने अमेरिकी चैनल सीएनएन से कहा कि पुतिन के व्यवहार में उन्हें पिछले वर्ष से ही बेचैन करने वाले कुछेक बदलाव दिख रहे हैं। वे अचानक डराने-धमकाने वाली भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। फ़िनलैंड से भी उनकी कुछ नई मांगें हैं। निईनिस्तो समझ नहीं पा रहे हैं कि पुतिन वाकई पगला गए हैं या पगलाने का ढोंग कर रहे हैं। कहते हैं, "हो सकता है कि वे केवल भ्रम फैलाना चाहते हों।"
किंतु पश्चिमी देशों के अधिकतर नेता और विश्लेषक नहीं मानते कि पुतिन कोई ढोंग रच रहे हैं। वे तर्क देते हैं कि यह भला कैसे हो सकता है कि पुतिन रूसी सैनिकों से कहें कि यूक्रेन पहुंचते ही "गले लगा कर उनका स्वागत" होगा। यूक्रेन की राजधानी कीव "सभी रूसी शहरों की मां है... प्रतीक्षा कर रही है कि नशाख़ोर और नवनाज़ीवादी गिरोह की ज़ेलेंस्की सरकार से उसे मुक्ति मिले।" रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के लिए शुरू-शुरू में बहुत युवा सैनिक और नए रंगरूट भेजे जाने और उनके बड़ी संख्या में हताहत होने का भी यही अर्थ लगाया जा रहा है कि पुतिन वास्तविकता से दूर के किसी कल्पनालोक में रहते हैं। यूक्रेन के 44 वर्षीय राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को नवनाज़ीवादी बताना भी सच को झुठलाना ही है। वे एक यहूदी पिता के पुत्र हैं। नाज़ियों ने यहूदियों का ही जातिसंहार किया था।
कुछ तो गड़बड़ है पुतिन के साथ : इन बातों के प्रकाश में पुतिन को जानने वाले पश्चिमी जगत के कई बड़े नेताओं का यह संदेह, कि रूसी राष्ट्रपति के साथ कोई दिमाग़ी गड़बड़ी है, चिंता का विषय है। इसीलिए पश्चिमी गुप्तचर सेवाओं और अमेरिकी नेतृत्व वाले 30 पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन 'नाटो' के उच्च अधिकारियों को भी इस बारे में गहरी छानबीन करने पर लगा दिया गया है। ऐसे बंद कमरों में उनकी बैठकें होती हैं, जहां से एक शब्द भी बाहर नहीं जा सकता। वॉशिंगटन में ऐसी ही एक गुप्त बैठक के बाद अमेरिका में फ्लोरिडा के सेनेटर मार्को रूबियो ने ट्वीट किया, "फ़िलहाल इतना ही कि पुतिन के साथ कुछ गड़बड़ है।"
अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय वहां की सभी गुप्तचर सेवाओं के महानिदेशक रहे जेम्स क्लैपर, कई वर्षों तक चौबीसों घंटे, पुतिन की खोज-ख़बर लेते रहे हैं। अमेरिकी चैनल सीएनएन से उन्होंने कहा, "मुझे उनकी बौद्धिक तीक्ष्णता और मानसिक संतुलन को लेकर बड़ी चिंता हो रही है।" जॉर्ज बुश के दिनों में अमेरिका की विदेशमंत्री रहीं और पुतिन से कई बार मिल चुकीं कोन्डोलीज़ा राइस को भी कोई संदेह नहीं है कि "ये एक दूसरे पुतिन हैं।" पुतिन को जानने-समझने वाले कई दूसरे लोगों ने पाया कि जब वे बोलते हैं, तो बहकने लग जाते हैं। विभ्रमित-से लगते हैं। उनकी बड़बोली डींगें हांकने की सूची इस बीच काफ़ी लंबी हो गई है। चाल-ढाल धीमी पड़ गई है। चेहरा फूल गया है।
व्लादिमीर पुतिन की कही बातों के हर वाक्य का विश्लेषण करना बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में स्थित नाटो के मुख्यालय के कुछ विशेषज्ञों का इन दिनों मुख्य काम है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ये विशेषज्ञ पाते हैं कि पुतिन के वक्तव्य "असंगति," "विवेकहीनता," "बेतुकेपन," और "धौंस-धमकी" से भरे होते जा रहे हैं। रूस के विरुद्ध पश्चिमी देशों के अपू्र्व प्रतिबंधों के आगे झुकना उन्हें अपनी मानहानि लगती है। क्षुब्ध होकर वे अपना और अधिक उग्र, अड़ियलपन और बाहुबली रूप दिखाने पर उतारू हो गए हैं। यही कारण है कि दुनिया जब सोच रही थी कि वे इतने सिरफिरे नहीं हो सकते कि उदाहरण के लिए परमाणु युद्ध की धमकी देने लगें, तो वे सबको भौचक्का कर देने वाली ठीक यही धमकी देने लगे। उनकी समझ से परमाणु बम ही उनका अमोघ अस्त्र है!
क्या परमाणु बम का उपयोग करेंगे पुतिन? : नाटो के इन विशेषज्ञों ने 2014 में पुतिन के लिखे एक ऐसे सिद्धांत की भी याद दिलाई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ऐसे युद्धों में, जिनमें अपनी हार होने जा रही हो, परमाणु बम का उपयोग एक विवेकसम्मत विकल्प है। ज़रूरी नहीं कि कोई विश्वव्यापी परमाणु युद्ध हो, तभी अपने बम का उपयोग किया जाए। शायद यही कारण है कि 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर धावा बोलने के कुछ ही घंटे बाद पश्चिमी देशों को दूर रहने की चेतावनी देते हुए पुतिन ने कहा, "वर्ना ऐसे परिणाम भुगतने पड़ेंगे, जैसे अपने इतिहास में आपने कभी नहीं भुगते हैं।"
आयरलैंड में डब्लिन के ट्रिनिटी कॉलेज में न्यूरोसाइकॉलॉजी के प्रोफेसर, इयान रॉबर्ट्सन ने चेतावनी दी है कि इस भ्रम में कोई न रहे कि पुतिन विवेक से काम लेंगे और कोई परमाणु युद्ध नहीं छेड़ेंगे। रॉबर्ट्सन जनवरी के मध्य से ही कहने लगे थे कि यूक्रेन पर रूसी हमले की "संभावना बहुत प्रबल है।" आक्रमण के एक सप्ताह बाद उनका कहना था कि अब हमें पुतिन के अगले क़दम 'परमाणु बम' के लिए भी तैयार हो जाना चाहिए। पुतिन पहले ही लंबे समय से "एक स्वपरिभाषित धार्मिकता-जैसे मिशन से प्रेरित होकर, और राजनैतिक मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए, उन सबका सफ़ाया कर देना चाहते हैं, जो उनका प्रतिरोध करने का रत्ती भर भी आभास देंगे।"
रॉबर्ट्सन का अनुमान है कि पुतिन "हाइब्रिस-सिन्ड्रम" नाम की बीमारी से भी पीड़ित हो सकते हैं। इस बीमारी वाला व्यक्ति वास्तविकता को प्रायः पहचान नहीं पाता। अपनी क्षमताओं, योग्यताओं और कार्यों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर देखता है।
इयान रॉबर्ट्सन की ये बातें बहुत अतिरंजित हो सकती हैं। पर, पुतिन को जानने-समझने वाले पश्चिम के लगभग सारे राजनीतिशास्त्री और मनोवैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि वे समय के साथ एक आत्ममुग्ध स्वेच्छाचारी (ऑटोक्रैट) बनते गए हैं। उनके मंत्री एवं सहयोगी उन्हें रोकने-टोकने या सच बोलने का साहस नहीं कर पाते। स्वेच्छाचारी लोग समय के साथ अपनी विवेकबुद्धि खो बैठते हैं। अपने आस-पास के उन चाटुकारों पर निर्भर हो जाते हैं, जो सही सूचनाएं उन तक पहुंचने नहीं देते।
अमेरिका भी बेचैन : कहने की आवश्यकता नहीं कि रूसी राष्ट्रपति की दिमाग़ी स्थिति के बारे में सबसे अधिक जिज्ञासा और भयपूर्ण चिंता अमेरिका को बेचैन कर रही है। बराक ओबामा के कार्यकाल में माइकल मैकफॉल मॉस्को में अमेरिकी राजदूत थे। अमेरिकी चैनल 'एनबीसी न्यूज़' के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "मैं रूसी बोलता हूं। मैंने उन्हें (पुतिन को) बोलते सुना है। मैं जानता हूं कि उन्होंने क्या कहा। मैंने पाया कि वे अपने तौर-तरीकों से लगातार परे हटते जा रहे हैं। मुझे बड़ी घबराहट हो रही है कि श्रीमान पुतिन उस (झूठे) प्रचार पर विश्वास करने लगे हैं, जिसे वे दशकों से चला रहे थे। ... हम विश्वास नहीं कर सकते कि इस समय जो कुछ हो रहा है, पुतिन उसके वास्तविक परिणाम को देख पा रहे हैं।"
वास्तविकता यही है कि तीन दशक पूर्व तक भूतपूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे यूक्रेन को अब अमेरिकी छत्रछाया वाले नाटो में जाने से रोकने, और उसे दुबारा रूस का हिस्सा बनाने की पुतिन की उत्कट इच्छा चाहे जितनी स्वाभाविक हो, वे इस इच्छा की पूर्ति सारी दुनिया को अपना दुश्मन और यूक्रेन को खंडहर बनाकर नहीं कर सकते। यूक्रेनी खंडहरों पर क़ब्ज़े के बाद वहां की बिलखती-भटकती निरीह जनता को वे क्या सांत्वना देंगे? हज़ारों मृतकों को कैसे जीवित करेंगे? जीवितों का दिल कैसे जीतेंगे? रूसी जनता भी भड़क सकती है। उसे कब तक अंधेरे में रखेंगे कि यूक्रेन पाने के लिए सारी दुनिया में रूस को अछूत बनना पड़ा!
पुतिन की कार्यशैली में आ गई क्रूरता, नृशंसता और उनके चेहरे-मोहरे में आगए परिवर्तन एक दूसरे क़िस्म की अटकलों को भी हवा दे रहे हैं। 'मेडिसिन डाइरेक्ट' नाम की संस्था के हुसैन अब्देह ने ब्रिटिश दैनिक 'डेली मेल' से कहा कि पुतिन के व्यवहार में आ गया बदलाव 'लांग-कोविड' के कारण भी हो सकता है।
कहीं कोविड-19 का असर तो नहीं... : अब्देह के अनुसार, "कोविड-19 महामारी के आरंभिक अध्ययनों में देखा गया कि कुछ थोड़े से लोगों की दिमाग़ी हालत बदल गई थी। वे अचानक सन्नीपातियों (डिलिरियम), बदहवासों या घबराए हुए लोगों जैसा बर्ताव करने लगे थे।"
'डेली मेल' का कहना है कि अतिरंजित आत्मविश्वास, बेहद लापरवाही और दूसरों के प्रति हेयभाव के रूप में भी इस बदलाव को देखा जा सकता है। 'लांग-कोविड' मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है। कमज़ोरी, थकान और मांसपेशियों के क्षय से दैनिक जीवन और काम-धंधा दूभर हो जाता है। फिलहाल यह पता नहीं है कि रूसी राष्ट्रपति कोरोना वायरस के किसी रूप से संक्रमित हुए थे या नहीं।
एक दूसरे ब्रटिश दैनिक 'डेली स्टार' ने लिखा कि रूसी राष्ट्रपति का चेहरा और गला पिछले कुछ समय से सूजा हुआ लगता है। 'डेली स्टार' में ही रूसी मामलों की ब्रिटिश विशेषज्ञ फ़ियोना हिल के अनुसार, "हमें पता है कि उन्हें पीठ में दर्द की समस्य़ा है। इसके पीछे यदि कोई गंभीर कारण नहीं है, तो हो सकता है कि वे बड़ी मात्रा में स्टेरॉइड लेते हों।" स्टेरॉइड हमारे शरीर की चयापचय क्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों का एक विशेष वर्ग हैं। उदाहरण के लिए, कोलेस्ट्रोल कहलाने वाली रक्तवसा या कोर्टिज़ोन नाम की दवा स्टेरॉइड है। स्टेरॉइड वाली कोई दवा अधिक मात्रा में लेने पर सोचने-विचारने की क्रिया में गड़बड़ी पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। सुसंगत ढंग से सोच-विचार करना कठिन हो जाता है।
जो भी हो, पुतिन का निजी जीवन इतना गोपनीय है कि उनके बदले हुए तेवर, अवाक कर देने वाली बातों और विध्वंसकारी निर्णयों से सही-ग़लत अटकलों का बाज़ार इन दिनों गर्म हो जाना स्वाभाविक है। ये अटकलें सही साबित होने पर उनके निर्णयों के दुष्परिणाम उन्हें नहीं, रूसी और यूक्रेनी जनता को बल्कि पूरी दुनिया को भुगतने पड़ेंगे। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और 2010 तक डॉयचे वेले हिंदी सेवा के प्रमुख रह चुके हैं)