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Russia-Ukraine War: सामान्य रूसी सैनिक के लिए पिछले 12 महीनों का क्या मतलब है?

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, शनिवार, 18 फ़रवरी 2023 (22:22 IST)
ऐबरिस्टविथ (वेल्स)। अगर ब्लादिमीर पुतिन ने उम्मीद के मुताबिक इस वसंत में यूक्रेन में एक नया हमला शुरू किया तो इसकी सफलता या असफलता की कुंजी सामान्य रूसी सैनिकों के हाथ में होगी। मॉस्को ने पिछले 12 महीनों में इन सैनिकों के बारे में बहुत कम विचार किया है। रूस ने अपने कानूनों को ताक पर रखते हुए बहुत कम प्रशिक्षित रंगरूटों को युद्ध में भेजा।
 
फरवरी 2022 में जिन सैनिकों को यह बताया गया था कि वे नियमित अभ्यास पर जा रहे हैं, उन्होंने खुद को यूक्रेन में युद्ध लड़ते हुए पाया। रूस ने अपने कानूनों को ताक पर रखते हुए बहुत कम प्रशिक्षित रंगरूटों को युद्ध में भेजा।
 
ऐसे नागरिक जिन्हें बीमारियां थीं और जिन्हें सैन्य सेवा से अयोग्य घोषित दिया जाना चाहिए था, उन्हें बुलाया गया और वर्दी पहना दी गई। और युद्धकालीन सेवा के लिए जुटाए गए लोगों से कहा गया कि वे अपनी चिकित्सा आपूर्ति स्वयं लाएं, क्योंकि मोर्चे पर इसकी भारी कमी है।
 
यूक्रेन की सेना ने रूस के सैनिकों की वर्दी में ऐसे भयभीत किशोरों को देखा, जो पकड़े जाने पर रोते हैं, वहीं ऐसे लोग भी थे, जो जिनेवा सम्मेलनों की परवाह किए बिना नागरिकों और युद्ध के कैदियों को क्रूरतापूर्वक यातना देते हैं, बलात्कार करते हैं और मारते हैं। रूस के सैनिक दुर्जेय लड़ाकू बल से बहुत अलग हो गए हैं जिसकी कई लोगों ने 1 साल पहले उम्मीद की थी।
 
बेशक, जनशक्ति की गुणवत्ता और मात्रा उन कई कारकों में से एक है, जो रूस को इस युद्ध को जारी रखने के तरीके को आकार देगा जिसमें इसके कमांडरों की यूक्रेन के पश्चिमी समर्थकों द्वारा उसे दिए जा रहे हथियारों की अधिक रेंज और मारक क्षमता की भरपाई करने के लिए अपनी रणनीति को समायोजित करने की क्षमता भी शामिल है।
 
अपनी स्वयं की आपूर्ति, विशेष रूप से गोला-बारूद की भरपाई करने में रूस की सफलता की डिग्री भी उन हमलों की तीव्रता को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होगी, जो मॉस्को यूक्रेनी नागरिकों और सैनिकों के खिलाफ समान रूप से बनाए रखने में सक्षम है।
 
हालांकि सितंबर 2022 में सशस्त्र बलों के लिए 3,00,000 पुरुषों की आंशिक लामबंदी की घोषणा से पता चलता है कि रूस, युद्ध में अपने पारंपरिक लाभों में से एक पर बहुत अधिक भरोसा करने की योजना बना रहा है और वह लाभ है युद्ध में भारी संख्या में सैनिकों को झोंककर प्रतिद्वंद्वी को हैरान करने की क्षमता।
 
लेकिन सवाल यह है कि क्या रूस इस घातक युद्ध में लड़ने के लिए बड़ी संख्या में अपने लोगों को जुटाना जारी रख पाएगा? हाल के अमेरिकी अनुमान बताते हैं कि पिछले 1 साल में लगभग 2,00,000 रूसी सैनिक यूक्रेन में मारे गए या घायल हुए हैं। इसका उत्तर रूसियों के सशस्त्र बलों के साथ जटिल संबंधों में निहित हो सकता है।
 
सैन्य सेवा के प्रति दृष्टिकोण
 
एक स्वतंत्र और अत्यधिक सम्मानित रूसी अनुसंधान संगठन 'लेवाडा सेंटर' द्वारा नवंबर 2022 में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि सर्वेक्षण में शामिल 49% रूसी इस बात से सहमत हैं कि हर खालिस आदमी को सेना में सेवा करनी चाहिए।
 
ओपिनियन पोल कभी भी इस बात की सही समझ नहीं देते हैं कि लोग वास्तव में क्या सोचते हैं और रूस में सर्वेक्षण के बारे में सतर्क रहने के कई कारण हैं, क्योंकि यूक्रेन में युद्ध के खिलाफ विरोध करना या सेना को बदनाम करना अवैध हो गया है। हालांकि लेवाडा केंद्र 1997 से नियमित रूप से इस सर्वेक्षण का आयोजन कर रहा है और परिणाम उल्लेखनीय रूप से स्थिर रहे हैं।
 
पिछले 25 वर्षों में इन परिणामों की निरंतरता से पता चलता है कि पुतिन शक्तिशाली सांस्कृतिक मान्यताओं और सामाजिक मानदंडों का दोहन कर रहे हैं, जब उन्होंने रूस के सैकड़ों हजारों लोगों को यूक्रेन में लड़ने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने का आह्वान किया।
 
लेकिन सेना और सैन्य सेवा के प्रति इन दृष्टिकोणों की व्यापक और दीर्घकालिक प्रकृति के बावजूद पुतिन की सितंबर की लामबंदी की घोषणा से पहले रूस ने यूक्रेन में अपने घटते सैनिकों के बदले वहां नए सैनिक भेजने के लिए की गई भर्ती के दौरान संघर्ष किया।
 
रूस के कब्जे वाले डोनेट्स्क और लुहांस्क में पीपुल्स मिलिशिया की भर्ती के लिए भारी-भरकम रणनीति का सहारा लेना पड़ा, इन खबरों के बीच कि उन क्षेत्रों में पुरुष खुद को घायल कर लेते हैं या युद्ध में भेजे जाने से बचने के लिए रिश्वत देते हैं।
 
2022 में रूसी रक्षा मंत्रालय ने स्वयंसेवी बटालियन बनाकर अधिक सैनिकों की आवश्यकता को पूरा करने का प्रयास किया। अल्पकालिक अनुबंधों के लिए स्थानीय औसत से 10 गुना तक वेतन देने और 40 और 50 के दशक में मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों से आवेदन स्वीकार करने के बावजूद इस प्रयास ने केवल सीमित सफलता हासिल की।
 
यह 2022 की गर्मियों में भी था कि कुख्यात निजी सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप को यूक्रेन में लड़ने के लिए नई भर्तियों के लिए रूस की जेलों तक में जाना पड़ा। वहां बंद कैदियों को अच्छा वेतन और एक पूर्ण क्षमा की पेशकश की गई थी, यदि वे युद्ध के 6 महीने तक जीवित रहे तो उनके मारे जाने पर उनके परिवारों को भुगतान का वादा किया गया था।
 
इस रणनीति ने कुछ समय के लिए रिक्तियों को भर दिया, लेकिन फिर स्वयंसेवकों का प्रवाह सूख गया, क्योंकि उच्च हताहत दरों की खबरें जेलों तक पहुंच गईं। फरवरी की शुरुआत में वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन ने घोषणा की कि वे अब रूस के कैदियों के बीच सैनिकों की तलाश नहीं करेंगे।
 
तनाव, गुस्सा और प्रतिक्रिया
 
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पुतिन एक सामान्य लामबंदी का आदेश देने से बचते रहे, क्योंकि उन्हें युद्ध के खिलाफ सार्वजनिक प्रतिक्रिया और इस बुलावे के बड़े पैमाने पर प्रतिरोध का डर था और उनका चिंतित होना सही था। हालांकि कई पुरुषों ने लेवाडा कैंटर के सर्वेक्षणों में परिलक्षित विचारों का अनुकरण करते हुए लामबंदी आदेशों का अनुपालन किया, लेकिन यह भी सच है कि यूक्रेन में लड़ने के लिए भेजे जाने से बचने के लिए सैकड़ों, हजारों लोग देश छोड़कर भाग गए।
 
रूसी समाज के भीतर जनसांख्यिकीय अंतर लामबंदी की इन प्रतिक्रियाओं में तीव्र विभाजन की व्याख्या करने में मदद करते हैं। लेवाडा सर्वेक्षण से पता चला है कि 18-24 आयु वर्ग के लोग, जो मॉस्को और रूस के बड़े शहरों में रहते हैं, कम से कम खालिस आदमी होने के साथ सैन्य सेवा की पहचान करने की क्षमता रखते हैं। उनके इस कथन से भी सहमत होने की सबसे अधिक संभावना है कि सैन्य सेवा संवेदनहीन और खतरनाक है और इससे हर कीमत पर बचा जाना चाहिए।
 
लेकिन वे पुरुष भी, जो सैन्य सेवा को सकारात्मक रूप से देखते हैं और अपने देशभक्ति के कर्तव्य को निभाने के लिए तैयार हैं, विद्रोह कर सकते हैं, जब वे देखते हैं कि शासन अपना पक्ष रखने में और उन्हें युद्ध के लिए पर्याप्त रूप से तैयार करने में विफल रहा है।
 
नए लामबंद सैनिक युद्ध का सामना करने से पहले दिए जाने वाले प्रशिक्षण और उपकरणों की कमी के बारे में शिकायत कर रहे हैं। इस असंतोष के कारण सैनिकों और उनके कमांडरों के बीच टकराव हो रहा है। ऐसी खबरें हैं कि सैनिकों को लड़ने से इंकार करने पर दंडित किया जा रहा है और वे अपने परिवारों की महिलाओं से उनकी ओर से रक्षा मंत्रालय के साथ बात करने की अपील कर रहे हैं।
 
सेना में इन तनावों का सैनिकों के मनोबल पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। दूसरी तरफ यूक्रेनी सैनिक उच्च स्तर की प्रेरणा से लबरेज हैं। एक सैन्य अभियान के शुरू होने के 1 साल बाद जिसमें मॉस्को के आसानी से जीतने की उम्मीद थी, आम रूसी सैनिकों में क्रोध, हताशा और प्रतिरोध के संकेत बढ़ रहे हैं। ये महत्वपूर्ण सबक हैं कि ये लोग नासमझ प्यादे नहीं हैं, जो किसी भी परिस्थिति में पुतिन की बात पर सिर झुकाएंगे।
 
यदि रूस को कोई अगला कदम उठाना है और पिछले महीनों में यूक्रेन में खोए हुए क्षेत्र को फिर से हासिल करना है तो उसे पहले अपने सैनिकों का विश्वास और सद्भावना हासिल करने की जरूरत है। क्या रूस का राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व ऐसा करने में सक्षम है? यह स्पष्ट नहीं है।(द कन्वरसेशन/भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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