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जेलेंस्की के प्रेसिडेंट बनने पर उनके ‘फौजी दादा’ के बारे में इंटरनेशनल मीडिया ने छापी थीं खूब खबरें

हमें फॉलो करें जेलेंस्की के प्रेसिडेंट बनने पर उनके ‘फौजी दादा’ के बारे में इंटरनेशनल मीडिया ने छापी थीं खूब खबरें
, मंगलवार, 1 मार्च 2022 (13:43 IST)
रूस दुनिया का दूसरा ताकतवर देश है। ऐसे में यूक्रेन का पिछले 6 दिनों से उससे फाइट करने के हौंसले ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है।

रूस यूक्रेन के बीच युद्ध से होने वाली तबाही नजर आ रही है, लेकिन बावजूद इसके प्रेसीडेंट जेलेंस्‍की ने अपना हौंसला और जुनून नहीं खोया है, यही वजह है कि यूक्रेन ने अभी रूस के सामने हथि‍यार नहीं डाले हैं।

आखि‍र क्‍या वजह है कि रूस से कई मामलों में पीछे होने के बावजूद यूक्रेन ने हार नहीं मानी है। दरसअल, इसके पीछे एक ही नाम है, राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की। जेलेंस्‍की ने अपने इरादे यही कहकर जाहिर कर दिए थे कि मैं नहीं झुकेगा।

दरअसल, जेलेंस्की के पुरखों ने हिटलर की फौज के छक्के छुड़ाए थे। उनके दादा रशियन रेड आर्मी में लेफ्टिनेंट थे। आइए जानते हैं उनके परिवार के बहादूरी की कहानी।

सुपर पावर रूसी सेना से दो दो हाथ कर रहे जेलेंस्की के दादा सिमॉन इवानोविच कभी रूस की रेड आर्मी के लेफ्टिनेंट थे। कहा जाता है कि जेलेंस्की के दादा सिमॉन ने सेकेंड दूसरे विश्‍व विद्ध में हिटलर की नाजी फौज के छक्के छुड़ा दिए थे। ये अलग बात है कि आज साल 2022 में उनके पोते राष्‍ट्रपति जेलेंस्की रूसी राष्ट्रपति पुतिन के खि‍लाफ वॉर कर रहे हैं।

दादा को मिला था बहादुरी का इनाम
मीडि‍या रिपोर्ट बताती है कि ये जोश और बहादुरी जेलेंस्की को विरासत में मिली है। किसी जमाने में रूस ने उनके दादा सिमॉन की बहादुरी को देखते हुए बीच युद्ध के मैदान में उन्हें प्रमोशन दिया था और उन्‍हें गार्ड से सीधे लेफ्टिनेंट बना दिया था।

कहा जाता है कि जेलेंस्‍की के दादा सिमॉन ने जर्मन सेना से करीब 18 दिनों तक मुकाबला किया था। आज भी उनका नाम यूक्रेन के वॉर मेमोरियल में रेड आर्मी के जांबाज के तौर पर दर्ज है।
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मोर्टार प्लाटून के कमांडर थे सि‍मॉन
1918 के सोवियत संघ में मजदूरों और किसानों ने मिलकर अपनी सेना बनाई थी। यह सेना सोवियत रेड आर्मी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर सेकेंड वर्ल्ड वॉर में लड़ी।

सिमॉन जेलेंस्की इसी आर्मी की मोर्टार प्लाटून के कमांडर थे। उन्होंने रेड आर्मी की सबसे महत्वपूर्ण यूनिट 57 गार्ड्स राइफल डिवीजन की 174वीं रेजिमेंट को लीड किया था। वे 23 जनवरी से 9 फरवरी, 1944 तक युद्ध के मैदान में थे।

बदला लेने बने थे फौजी
सिमोन के फौजी बनने के पीछे बदले की कहानी है। उनका फौजी बनने को कोई इरादा नहीं था, लेकिन सिमोन जेलेंस्की के पिता और 3 भाइयों के परिवार को तानाशाह हिटलर की सेना ने जिंदा ही जमीन में दफना कर मार दिया था। कहा जाता है कि हिटलर की सेना उनसे सिर्फ इसलिए नफरत करती थी क्‍योंकि सिमोन और उनका परिवार यहूदी था।

पुतिन ने क‍ही थी ये बात
24 फरवरी को पुतिन ने युद्ध का ऐलान करते वक्त कहा था- मैं यूक्रेन का डिमिलिटराइजेशन (असैन्यीकरण) और डिनाजीफिकेशन (नाजियों के कब्जे से मुक्त) करूंगा।

इस पर जेलेंस्की ने अपने दादा की कहानी सुनाई थी। जेलेंस्की ने कहा था, यूक्रेन नाजियों के कब्जे में कैसे हो सकता है, मैं तो नाजी नहीं हूं? मेरे दादा तो नाजियों के खिलाफ लड़े थे और उन्होंने वहां बहादुरी से दुश्मन का सामना किया था।

जेलेंस्की के यूक्रेन के प्रेसिडेंट बनने पर उनके दादा सिमोन के बारे में इंटरनेशनल मीडिया ने से सारी खबरें प्रकाशि‍त की थी।

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