हो गई है पीर पर्वत-सी ‍पिघलनी चाहिए...

Webdunia
FILE
कवि दुष्यंत कुमार की लोकप्रि य रचना- 'हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए...' समाज के हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, पथ-प्रदर्शक है जो व्यवस्था के खिलाफ खम ठोंकता है, जनहित में उसे बदलने की कोशिश करता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहे अर‍‍विन्द केजरीवाल ने भी गांधी जयंती के मौके पर अपनी राजनीतिक पार्टी का ऐलान करते हुए इस गीत को गुनगुनाया। इस जोशीले गीत को हम आपके लिए भी प्रस्तुत कर रहे हैं...



हो गई है पीर...

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

भारत और पाकिस्तान के बीच नदी परियोजनाओं पर क्या है विवाद

10 बिन्दुओं में समझिए आपातकाल की पूरी कहानी

अलविदा रणथंभौर की रानी 'एरोहेड', बाघिन जिसके जाने से हुआ जंगल की एक सदी का अंत

मेघालय ने पर्यटकों की सुरक्षा के लिए बनाई कार्य योजना

ईरान की सैन्य क्षमता से अब दुनिया में दहशत

सभी देखें

समाचार

उद्धव के बाद फडणवीस से मिले आदित्य ठाकरे, क्या महाराष्ट्र में होने वाला है कोई बड़ा उलटफेर

मानसून सत्र में गूंजेंगे कौनसे मुद्दे, INDIA Alliance की बैठक में बना फुल प्लान, 24 पार्टियां शामिल, AAP ने क्यों बनाई दूरी

पंजाब में AAP को झटका, विधायक अनमोल गगन मान का इस्तीफा, राजनीति को भी कहा अलविदा