वेदों में है गंजेपन का सटीक इलाज

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नई दिल्ली। हिंदुओं के धर्मग्रंथ चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। अथर्ववेद में व्यक्ति के जीवन से जुड़ी समस्याओं का निदान बताया गया है। अथर्ववेद को कुछ तथाकथित विद्वान जादू, तंत्र और मंत्र का ग्रंथ मानते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते की अथर्ववेद जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान का खजाना है।

अथर्ववेद की चरक संहिता में गंजेपन के बहुत सारे इलाज बताए गए हैं। आपके लिए हम लाए हैं सबसे आसान और सबसे कठिन इलाज।

अगले पन्ने पर हम जानते हैं गंजेपन से जुड़ी समस्या का क्या है समाधान...


अथर्ववेद की चरक संहिता में गंजेपन के बहुत सारे इलाज बताए गए हैं लेकिन सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हुआ है जोंक थैरेपी। गंजेपन के लिए इस इलाज का इस्तेमाल करीब 2,000 से भी ज्यादा सालों से जारी है। लोग इसे सबसे कठिन इलाज मानते हैं।

आजकल जोंक थैरेपी का इस्तेमाल बहुत से शहरों में होने लगा है और इससे 92 प्रतिशत लोगों को लाभ मिल रहा है। इसे विज्ञान की भाषा में लीच थैरेपी कहा जाता है।

सबसे सरल : चरक संहिता और आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार जोंक थैरेपी के अलावा प्रतिदिन प्रात: आंकड़े का रस लगाने से भी सिर पर बाल उगने लगते हैं। इसके अलावा लहसुन या प्याज का रस लगाने से भी बालों का फंगस दूर होता है और नए बाल आते हैं।

अगले पन्ने पर कैसे करते हैं जोंक थैरेपी और इसका कैसा असर होता है...


गंजेपन का सबसे बेहतर इलाज है जोंक थैरेपी। जोंक को आपके सिर पर डाल देते हैं। सिर का जो भी दूषित खून होता है उसे जोंक चूस लेती है

शरीर के प्रदूषित हिस्सों की सफाई के लिए जोंक का इस्तेमाल सबसे अच्छा है। सिर में फफूंद या फंगस हो जाती है जिसके कारण रोम ‍िछद्र बंद हो जाते हैं और बालों की जड़ें कमजोर होकर बाल झड़ने लगते हैं। जोंक इस फंगस को खा जाती है और सिर पूरी तरह से साफ होकर फफूंद ‍मुक्त हो जाता है।

इससे सिर में रक्तशोधन होकर रक्त का संचार बढ़ जाता है और नए सिरे से रोम ‍िछद्रों में बाल उगने लगते हैं। जोंक के स्लाइवा में विशेष प्रकार के तत्व होते हैं, जो दर्द दूर करने, रक्त के प्रदूषित तत्वों को दूर करने और रक्त को पतला करने में मददगार होते हैं।

मेडिक्लिनिकल जोंकें शरीर से दूषित रक्त या घाव आदि से प्रदूषित हिस्सों को निकाल बाहर करती हैं। आजकल जोंकों को प्लास्टिक सर्जरी के अलावा हृदय रोगों के उपचार में भी काम लिया जा रहा है।

आधे घंटे तक सिर से चिपकी रहने वाले जोंकों को फिर 6 माह तक इस्तेमाल नहीं किया जाता और उन जोंकों को दूसरे के सिर पर भी इस्तेमाल नहीं किया जाता।

आधा घंटे के बाद जोंक के मुंह पर हल्दी डालकर उसे सिर से अलग कर लिया जाता है। जोंक चिकित्सा के दौरान और बाद में भी किसी भी प्रकार के साबुनों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध रहता है। (वेबदुनिया डेस्क)
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