क्या बरमूडा ट्राइंगल का निर्माण किया था हिन्दू देवता अश्विनी कुमारों ने?

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वेद और पुराणों में कई तरह के रहस्य छिपे हुए हैं। संस्कृत के श्लोकों के सही अर्थ को पहचानना जरूरी है। वेदों में पृथ्वी और ब्रह्मांड संबंधी हर बात का खुलास किया गया है। इसी तरह ऋग्वेद और अथर्व वेद की कुछ ऋचाओं के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि बरमूडा ट्राइंगल अर्थात समुद्र में भुतहा त्रिकोण का निर्माण हिन्दू देवता अश्‍विनी कुमारों ने किया था। 
कौन थे अश्विनी कुमार : वेदों के प्रमुख 33 देवताओं में से दो देवताओं को अश्विनी कुमार कहा जाता है। अश्‍विनी देवों से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम अश्‍विनी कुमार रखा गया। ये मूल रूप से चिकित्सक थे। ये कुल दो हैं। एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है। उल्लेखनीय है कि कुंती ने माद्री को जो गुप्त मंत्र दिया था उससे माद्री ने इन दो अश्‍विनी कुमारों का ही आह्वान किया था। 5 पांडवों में नकुल और सहदेव इन दोनों के पुत्र हैं।

इन्हें सूर्य का औरस पुत्र भी कहा जाता है। सूर्यदेव की दूसरी पत्नीं संज्ञा इनकी माता थी। संज्ञा से सूर्य को नासत्य, दस्त्र और रैवत नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। नासत्य और दस्त्र अश्विनीकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुए। एक अन्य कथा अनुसार अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के 2 पुत्र हैं।
 
इनका संबंध रात्रि और दिवस के संधिकाल से ऋग्वेद ने किया है। उनकी स्तुति ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में की गई है। वे कुमारियों को पति, वृद्धों को तारुण्य, अंधों को नेत्र देने वाले कहे गए हैं। उषा के पहले ये रथारूढ़ होकर आकाश में भ्रमण करते हैं और इसी कारण उनको सूर्य पुत्र मान लिया गया। निरुक्तकार इन्हें 'स्वर्ग और पृथ्वी' और 'दिन और रात' के प्रतीक कहते हैं। चिकित्सक होने के कारण इन्हें देवताओं का यज्ञ भाग प्राप्त न था। च्यवन ने इन्द्र से इनके लिए संस्तुति कर इन्हें यज्ञ भाग दिलाया था।
 
दोनों कुमारों ने राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के पतिव्रत से प्रसन्न होकर महर्षि च्यवन का इन्होंने वृद्धावस्था में ही कायाकल्प कर उन्हें चिर-यौवन प्रदान किया था। इन्होंने ही दधीचि ऋषि के सिर को फिर से जोड़ दिया था। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिए इन्होंने उनका सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया था और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अश्‍विनी कुमार चिकित्सक के अलावा खगोल और भूगोल विज्ञान के भी ज्ञाता थे। वे सदा आसमान में विचरण करते रहते थे। भारतीय दर्शन के विद्वान उदयवीर शास्त्री ने वैशेषिक शास्त्र की व्याख्या में अश्विनों को विद्युत-चुम्बकत्व बताया है।
 
अगले पन्ने पर क्या है बरमूडा ट्राइंगल...

क्या है बरमूडा ट्राइंगल : पूर्वी-पश्चिम अटलांटिक महासागर में बरमूडा त्रिकोण है। अर्थात समुद्र में एक ऐसा त्रिकोणीय क्षेत्र है जिसके पास जाने या जिसके उपर उड़ने पर यह किसी भी जहाज, वायुयान आदि को अपने भीतर खींच लेता है और फिर उसका कोई अता पता नहीं चलता। इसी कारण इसे भुतहा त्रिकोण भी कहा जाता है। यह त्रिकोण बरमूडा, मयामी, फ्लोरिडा और सेन जुआनस से मिलकर बनता है। इसकी परिधि फ्लोरिडा, बहमास, सम्पूर्ण कैरेबियन द्वीप तथा महासागर के उत्तरी हिस्से के रूप में बांधी है। कुछ ने इसे मैक्सिको की खाड़ी तक बढ़ाया है। शोधकर्था अभी तक इसके सही क्षेत्रफल को समझ नहीं पाए हैं। 
इस इलाके में आज तक अनगिनत समुद्री और हवाई जहाज आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गए हैं और लाख कोशिशों के बाद भी उनका पता नहीं लगाया जा सका है। कुछ लोग इसे किसी परालौकिक ताकत की करामात मानते हैं, तो कुछ को यह सामान्य घटनाक्रम लग रहा है। यह विषय कितना रोचक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पर कई किताबें और लेख लिखे जाने के साथ ही फिल्में भी बन चुकी हैं। हालांकि इसके भीतर जबरदस्त चुम्बकीय आकर्षण विद्यमान होने के कारण ऐसा होता है।
 
यहां से अमेरिका, यूरोप और कैरेबियन द्वीपों के लिए रोजाना कई जहाज निकलते हैं। यही नहीं, फ्लोरिडा, केरेबियन द्वीपों और दक्षिण अमेरिका की तरफ जाने वाले हवाई जहाज भी यहीं से गुजरते हैं। यही कारण है कि कुछ लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि इतने यातायात के बावजूद कोई जहाज अचानक से गायब हो जाए। ऐसे में कोई दुर्घटना होती है तो किसी को पता चल ही जाता है। विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहां हैं। पानी हरा है और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है। जलसेना के अधिकारियों के हवाले से लिखा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए।      
 
मशहूर अन्वेषक क्रिस्टोफर कोलंबस पहले लेखक थे, जिन्होंने यहां के अजीबो-गरीब घटनाक्रम के बारे में लिखा था। बकौल क्रिस्टोफर- उन्होंने और उनके साथियों ने आसमान में बिजली का अनोखा करतब देखा। उन्हें आग की कुछ लपटें भी दिखाई दीं। इसके बाद समुद्री यात्रा पर निकले दूसरे लेखकों ने अपने लेखों में इस तरह के घटनाक्रम का उल्लेख किया।
 
कैसे निर्मित हुआ यह बरमूडा ट्राइंगल...
 

पौराणिक इतिहास के जानकार मानते हैं कि ऋग्वेद के अस्य वामस्य सूक्त में कहा गया है कि मंगल का जन्म धरती पर हुआ है। जब धरती ने मंगल को जन्म दिया, तब मंगल उससे दूर कर दिया गया। इस घटना के चलते धरती अपना संतुलन खो बैठी और अपनी धुरी पर घूमने तेजी से घुमने लगी)। ऐसा कहा जाता है कि उस समय धरती को संभालने के लिए दैवीय वैध, अश्विनी कुमार ने त्रिकोणीय आकार का लोहा उसके उसे स्थान पर लगा दिया जहां से मंगल की उत्पत्ति हुई थी। इसके बाद धरती (भूमि) अपनी उसी अवस्था में धीरे धीरे रुक गई।
 
माना जाता है कि कि इसी के कारण पृथ्वी एक विशेष कोण पर झुकी हुई है। यही झुका हुआ स्थान ही बरमूडा ट्रायंगल है। यह भी कहा जाता है कि वर्षों तक भूमि में ही दबा रहने के कारण यह त्रिकोणीय लोह स्तंभ लोहा प्राकृतिक चुम्बक बन गया। इस चुम्बकत्व के कारण ही जो भी कोई जहाज या वायुयान इसके करीब जाता है तो वह इस समुद्र भंवर में दबें उस चुम्बक के कारण खिंचा चला जाता है।
 
एक दूसरी मान्यता अनुसार यह भी कहा जाता है कि अथर्व वेद में कई रत्नों का उल्लेख है, जिनमें से एक रत्न है दर्भा। उच्च घनत्व वाला यह रत्न न्यूट्रॉन स्टार का एक बहुत ही छोटा रूप है। दर्भा रत्न का उच्च गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र, उच्च कोटि की एनर्जेटिक रेज का उत्त्सर्जन और हलचल वाली वस्तुओं को नष्ट करना आदि है। इस क्षेत्र में दर्भा रत्न या इसके जैसी कोई वस्तु होने के कारण अधिक ऊर्जावान विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्त्सर्जन होता है, और वायरलेस से निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों के इसके संपर्क में आते ही वायरलेस खराब हो जाती होगी और इसी कारण उस क्षेत्र में मौजूद हर वस्तु उसके आकर्षण में आकर नष्ट हो जाती होगी।

अंत में जानिये आखिर विज्ञान क्या कहता है इस बारे में...

विज्ञान की नजर में बरमूडा ट्राएंगल : बरमूडा ट्राएंगल या उत्तर अटलांटिक महासागर (नार्थ अटलांटिक महासागर) का वह हिस्सा, जिसे 'डेविल्स ट्राएंगल' या 'शैतानी त्रिभुज' भी कहा जाता था, आखिरकार इस 'शैतानी त्रिभुज' की पहेली को सुलझा लिया गया है। साइंस चैनल वाट ऑन अर्थ (What on Earth?) पर प्रसारित की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अजीब तरह के बादलों की मौजूदगी के चलते ही हवाई जहाज और पानी के जहाजों के गायब होने की घटनाएं बरमूडा ट्राएंगल (त्रिकोण) के आस पास देखने को मिलती हैं।
 
इन बादलों को हेक्सागॉनल क्लाउड्‍स (Hexagonal clouds) नाम दिया गया है जो हवा में एक बम विस्फोट की मौजूदगी के बराबर की शक्ति रखते हैं और इनके साथ 170 मील प्रति घंटा की रफ़्तार वाली हवाएं होती हैं। ये बादल और हवाएं ही मिलकर पानी और हवा में मौजूद जहाजों से टकराते हैं और फिर वे कभी नहीं मिलते। 5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला ये इलाका पिछले कई सौ सालों से बदनाम रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बेहद तेज रफ्तार से बहती हवाएं ही ऐसे बादलों को जन्म देती हैं। ये बादल देखने में भी बेहद अजीब रहते हैं और एक बादल का दायरा कम से कम 45 फीट तक होता है। इनके आकार के कारण इन्हें हेक्सागोनल क्याउड्‍स (षटकोणीय बादल) कहा जाता है।
 
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये हवाएं इन बड़े बड़े बादलों का निर्माण करती हैं और एक विस्फोट की तरह समुद्र के पानी से टकराते हैं और सुनामी से भी ऊंची लहरे पैदा करते हैं जो आपस में टकराकर और ज्यादा ऊर्जा पैदा करती हैं। इस दौरान ये अपने आस-पास मौजूद सब कुछ बर्बाद कर देते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये बादल बरमूडा आइलैंड के दक्षिणी छोर पर पैदा होते हैं और फिर करीब 20 से 55 मील का सफर तय करते हैं। कोलराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और मीट्रियोलोजिस्ट (मौसमविज्ञानी) डॉ. स्टीव मिलर ने भी इस दावे का समर्थन किया है। उन्होंने भी दावा किया है कि ये बादल अपने आप ही पैदा होते हैं और इनका पता लगा पाना भी बेहद मुश्किल है।
 
बरमूडा ट्राएंगल रहस्य नहीं बल्कि टाइम जोन का एक छोर : जानकारों की मानें तो बरमूडा ट्राएंगल रहस्य नहीं बल्कि टाइम जोन का एक छोर है। धरती पर एक ब्लैक होल की तरह है बरमूडा ट्राएंगल दूसरी दुनिया में जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आसान सी भाषा में कहें तो बरमूडा ट्राएंगल में एक खास तरह के हालात पैदा होते हैं जिसके चलते वह एक टाइम जोन से दूसरे में जाने का जरिया बन जाता है। टाइम जोन समझने के लिए हम एक और तरीका अपनाते हैं। मान लीजिए कि आप दिल्ली में हैं।
 
अगर कुछ ऐसा हो जाए जिससे आप महाभारत के दौर में चले जाएं कौरवों-पांडवों की लड़ाई चल रही हो और आप भी वहां मौजूद हों। या फिर कुछ उस तरह जैसा फिल्म लव स्टोरी 2050 में हुआ प्रियंका चोपड़ा की मौत के बाद हीरो टाइम मशीन का सहारा लेकर 2050 में पहुंच जाता है। यानी पलक झपकते ही कई सालों का सफर तय कर लिया जाता है। कुल मिलाकर बरमूडा ट्राएंगल को टाइम जोन में जाने का जरिया भी माना जाता है। यानी एक रहस्यमय टाइम मशीन की तरह काम करता है।
 
सबसे बड़ी बात ये कि इस टाइम जोन का इस्तेमाल इंसान नहीं बल्कि दूसरी दुनिया के लोग करते हैं। यानी बरमूडा ट्राएंगल धरती से हजारों किलोमीटर दूर बसे हुए एलियनों के लिए एक पोर्टल है। इस थ्योरी को और समझने के लिए ये वैज्ञानिक तथ्य जानने बेहद जरूरी हैं जो सालों की जांच पड़ताल के बाद सामने आए है। एक साल में 25 बार ऐसा होता है जब बरमूडा ट्राएंगल का आकार सिकुड़कर सिर्फ ढाई वर्गमील तक हो जाता है। यानी 15 हजार वर्गमील से घटकर ढाई मील और सिर्फ 28 मिनट तक के लिए खास तरह के हालात बने रहते हैं। इस वक्त जो भी विमान या जहाज बरमूडा ट्राएंगल के पास से गुजरता है, भयंकर शक्तिशाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें उसे अपनी ओर खींच लेती है।
 
इस दौरान बरमूडा ट्राइएंगल टाइम जोन के पहले मुहाने की तरह काम करता है। दूसरा मुहाना धरती से लाखों किलोमीटर दूर होता है। यानी एक बार जो चीज बरमूडा ट्राएंगल में गई वो दूसरी दुनिया में फेंक दी जाती है। इसी सिद्धांत को एलियन भी धरती पर आने के लिए अपनाते हैं। दूर अंतरिक्ष में टाइम जोन के एक मुहाने से एलियन भीतर दाखिल होते हैं पलक झपकते ही टाइम जोन का आकार बढ़ता है और वो उसके दूसरे छोर पर पहुंच जाते हैं यही दूसरा छोर है बरमूडा ट्राएंगल। 
 
यही वजह है कि बरमूडा ट्राएंगल के इर्दगिर्द एलियन देखे जाने की घटनाएं सबसे ज्यादा सामने आती हैं। कहा तो यह भी जाता है कि टाइम जोन पर रिसर्च के लिए इसी हिस्से में अमेरिका की एक बहुत बड़ी सीक्रेट लैबोरेटरी है। यहां पर एरिया-51 की तरह ही एलियन से जुड़ी रिसर्च भी की जाती है। अब यहां पाए जाने वाले हेक्सागोनल क्लाउड्‍स के कारण ऐसी घटनाओं का दावा किया गया है, लेकिन फिलहाल हमारे पास ऐसा कोई ज्ञान, मशीन या उपकरण नहीं है जो कि इस नए सिद्धांत की सच्चाई को जांच सके।
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