Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भरत खण्ड परिक्रमा क्या होती है और कैसे करते हैं, जानिए

हमें फॉलो करें भरत खण्ड परिक्रमा क्या होती है और कैसे करते हैं, जानिए

अनिरुद्ध जोशी

आपने बहुत तरह की परिक्रमा के नाम सुने होंगे, जैसे नर्मदा परिक्रमा, गोवर्धन परिक्रमा, ब्रज मंडल की चौरासी कोस परिक्रमा, अयोध्या पंचकोशी परिक्रमा, प्रयाग पंचकोशी, छोटा चार धाम परिक्रमा, राजिम परिक्रमा, तिरुमलै और जगन्नाथ परिक्रमा, क्षिप्रा परिक्रमा आदि परंतु आपने भरत खंड की परिक्रमा के बारे में कम ही सुना होगा। चलिए आज इसके बारे में संक्षिप्त में बता देते हैं।
 
 
सोमवती अमावास्या को महिलाएं पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करती हैं। इसी प्रकार देवी दुर्गा की परिक्रमा की जाती है। पवित्र धर्मस्थानों- अयोध्या में सरयु, ब्रज में गोवर्धन, चित्रकूट में कामदगिरि, दक्षिण भारत में तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम आदि पुण्य स्थलों की परिक्रमा होती है। इसमें अयोध्या में पंचकोसी (25 कोस की), ब्रज में गोवर्धन पूजा की सप्तकोसी, ब्रह्ममंडल की चौरासी कोस, नर्मदाजी की अमरकंटक से समुद्र तक छ:मासी और समस्त भारत खण्ड की वर्षों में पूरी होने वाली इस प्रकार की विविध परिक्रमाओं के बारे में पुराणों में विस्तार से मिलता है।
 
 
संपूर्ण अखंड भारत की यात्रा करना ही भरत खंड की परिक्रमा कहलाती है। परिवाज्रक संत और साधु ये यात्राएं करते हैं। इस यात्रा के पहले क्रम में सिंधु की यात्रा, दूसरे में गंगा की यात्रा, तीसरे में ब्रह्मपु‍त्र की यात्रा, चौथे में नर्मदा, पांचवें में महानदी, छठे में गोदावरी, सातवें में कावेरा, आठवें में कृष्णा और अंत में कन्याकुमारी में इस यात्रा का अंत होता है। हालांकि प्रत्येक साधु समाज में इस यात्रा का अलग अलग विधान और नियम है।  

 
अंत में प्राय: सोमवती अमावास्या को महिलाएं पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करती हैं। इसी प्रकार देवी दुर्गा की परिक्रमा की जाती है। पवित्र धर्मस्थानों- अयोध्या में सरयु, ब्रज में गोवर्धन, चित्रकूट में कामदगिरि, दक्षिण भारत में तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम आदि पुण्य स्थलों की परिक्रमा होती है। इसमें अयोध्या में पंचकोसी (25 कोस की), ब्रज में गोवर्धन पूजा की सप्तकोसी, ब्रह्ममंडल की चौरासी कोस, नर्मदाजी की अमरकंटक से समुद्र तक छ:मासी और समस्त भारत खण्ड की वर्षों में पूरी होने वाली इस प्रकार की विविध परिक्रमाओं के बारे में पुराणों में विस्तार से मिलता है।
 
 
तीर्थ यात्रा के लिए शास्त्रीय निर्देश यह है कि उसे पद यात्रा के रूप में ही किया जाए। यह परंपरा कई जगह निभती दिखाई देती है। पहले धर्म परायण व्यक्ति छोटी-बड़ी मंडलियां बनाकर तीर्थ यात्रा पर निकलते थे। यात्रा के मार्ग और पड़ाव निश्चित थे। मार्ग में जो गांव, बस्तियां, झोंपड़े नगले पुरबे आदि मिलते थे, उनमें रुकते, ठहरते, किसी उपयुक्त स्थान पर रात्रि विश्राम करते थे। जहां रुकना वहां धर्म चर्चा करना-लोगों को कथा सुनाना, यह क्रम प्रातः से सायंकाल तक चलता था। रात्रि पड़ाव में भी कथा कीर्तन, सत्संग का क्रम बनता था। अक्सर यह यात्राएं नवंबर माह के मध्य में प्रारंभ होती है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

15 जनवरी 2021 : आपका जन्मदिन