अध्यात्म के मार्ग के चार पद, जानकर हैरान रह जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
जब कोई व्यक्ति अध्यात्म या ध्यान के मार्ग पर चलने लगता है और वह निरंतर उसी मार्ग पर चलता रहता है तो उसे उस मार्ग में जो उपलब्धियां मिलती है उसे विद्वानों ने सांसारिक भाषा में पद और आध्यात्म की भाषा में मोक्ष, मुक्ति या समाधि की स्थितियां या ज्ञान कहा है। आखिर यह पद कितने और क्या होते हैं आओ इसे जानते हैं।
 
#
ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार चार तरह के पद होते हैं- 1.ब्रह्मपद, 2.रुद्रपद, 3.विष्णुपद और 4.परमपद (सिद्धपद)
 
1.ब्रह्मपद : यह सबसे बड़ा पद होता है। इस यह अनिर्वचनीय और अव्यक्त कहा गया है। इस अवस्था में व्यक्ति ब्रह्मलीन हो जाता है।
 
2.रुद्रपद : विष्णुपद से बड़कर रुद्रपद को माना जाता है, जबकि व्यक्ति अखंड समाधी में लीन हो जाता है।
 
3.विष्णुपद : सिद्धपद से बड़कर है विष्णुपद, जबकि सिद्धियों से बड़कर व्यक्ति मोक्ष की दशा में स्थित होकर स्थिरप्रज्ञ हो जाता है।

 
4.परमपद : जब कोई साधना प्रारंभ करता है तो सबसे पहले वह सिद्ध बनता है। इस सिद्धपद को ही परमपद कहते हैं।
 
#
भक्ति सागर में समाधि के 3 प्रकार बताए गए है- 1.भक्ति समाधि, 2.योग समाधि, 3.ज्ञान समाधि।
 
1.भक्ति समाधि : भक्त के द्वारा व्यक्ति परमपद प्राप्त कर लेता है।
2.योग समाधि : अष्टांग योग का पालन करके भी व्यक्ति परमपद प्राप्त कर सकता है।
3.ज्ञान समाधि : ज्ञान अर्थात निर्विचार या साक्षी भाव में रहकर भी व्यक्ति परमपद प्राप्त कर सकता है।
 
 
#
शैव मार्ग में समाधि के 6 प्रकार बताए गए हैं जिन्हें छह मुक्ति कहा गया है:-
1.साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), 2.सालोक्य (लोक की प्राप्ति), 3.सारूप (ब्रह्मस्वरूप), 4.सामीप्य, (ब्रह्म के पास), 5.साम्य (ब्रह्म जैसी समानता), 6.लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।
 
#
महर्षि पतंजलि ने समाधि, मुक्ति या पद को मुख्यत: दो प्रकार में बांटा है:- 1.सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात।
 
1.सम्प्रज्ञात समाधि:- वैराग्य द्वारा योगी सांसारिक वस्तुओं (भौतिक वस्तु) के विषयों में दोष निकालकर उनसे अपने आप को अलग कर लेता है और चित्त या मन से उसकी इच्छा को त्याग देता है, जिससे मन एकाग्र होता है और समाधि को धारण करता है। यह सम्प्रज्ञात समाधि कहलाता है। 
 
2.असम्प्रज्ञात समाधि:- इसमें व्यक्ति को कुछ भान या ज्ञान नहीं रहता। मन जिसका ध्यान कर रहा होता है उसी में उसका मन लीन रहता है। उसके अतिरिक्त किसी दूसरी ओर उसका मन नहीं जाता। दरअसल यह अमनी दशा है।
 
 
संप्रज्ञात समाधि को 4 भागों में बांटा गया है:-
1.वितर्कानुगत समाधि:- सूर्य, चन्द्र, ग्रह या राम, कृष्ण आदि मूर्तियों को, किसी स्थूल वस्तु या प्राकृतिक पंचभूतों की अर्चना करते-करते मन को उसी में लीन कर लेना वितर्क समाधि कहलाता है।
 
2.विचारानुगत समाधि:- स्थूल पदार्थों पर मन को एकाग्र करने के बाद छोटे पदार्थ, छोटे रूप, रस, गन्ध, शब्द आदि भावनात्मक विचारों के मध्य से जो समाधि होती है, वह विचारानुगत अथवा सविचार समाधि कहलाती है।
 
 
3.आनन्दानुगत समाधि:-आनन्दानुगत समाधि में विचार भी शून्य हो जाते हैं और केवल आनन्द का ही अनुभव रह जाता है।
 
4.अस्मितानुगत समाधि:- अस्मित अहंकार को कहते हैं। इस प्रकार की समाधि में आनन्द भी नष्ट हो जाता है। इसमें अपनेपन की ही भावनाएं रह जाती है और सब भाव मिट जाते है। इसे अस्मित समाधि कहते हैं। इसमें केवल अहंकार ही रहता है। पतांजलि इस समाधि को सबसे उच्च समाधि मानते हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

29 मार्च 2025 को बन रहे हैं 6 अशुभ योग, 5 राशियों को रहना होगा सतर्क, करना होंगे 5 उपाय

गुड़ी पड़वा 2025: खुशियों और उमंग से भरे इन गुड़ी पड़वा शायरी और संदेशों से बढ़ाएं त्योहार की रौनक

गुड़ी पड़वा पर क्यों खाई जाती है कड़वी नीम और गुड़, जानिए सेहत को मिलते हैं क्या फायदे

चैत्र नवरात्रि में घर के वास्तु दोष दूर करने के लिए करिए ये सरल उपाय, मां दुर्गा की बरसेगी कृपा

चैत्र नवरात्रि 2025: दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से हर क्षेत्र में होगी विजय

सभी देखें

धर्म संसार

28 मार्च 2025 : आपका जन्मदिन

28 मार्च 2025, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

गुड़ी पड़वा पर कैसे बनाएं और सजाएं गुड़ी, जानें क्या है जरूरी सामग्री?

घर की लाड़ली के लिए मां दुर्गा के 9 कल्याणकारी नाम

6 अप्रैल को दिन के 12 बजे दुनिया देखेगी रामलला का सूर्य तिलक, 20 सालों तक बढ़ता रहेगा समय, जानिए आयोजन से जुड़ी जानकारी

अगला लेख