हिन्दू धर्म : तीन प्रकार के विश्वासी लोग

Webdunia
मनु स्मृति, पुराण आदि स्मृति ग्रंथों में उन लोगों के बारे में बताया गया है, जो हिन्दू धर्म का ज्ञान नहीं रखते हैं और वे धर्म के बारे में अपनी मनमानी व्याख्या बनाकर समाज में भ्रम फैलाते हैं। ऐसे लोग न तो धर्म में विश्‍वास रखते हैं लेकिन जताते हैं कि विश्‍वास रखते हैं और न ही इन लोगों से राष्ट्रसेवा की कामना की जा सकता है।

इसी तरह वे ईश्वर को लेकर भी गफलत में रहते हैं। उन्हें कभी लगता है कि ईश्वर जैसी कोई शक्ति जरूर है और कभी लगता है कि नहीं है। वे उनका दर्शन खुद ही गढ़ते रहते हैं। ऐसे लोग कभी धर्म या ईश्वर का विरोध करते हैं तो कभी तर्क द्वारा उनका पक्ष भी लेते पाए जाते हैं। ऐसे विकारी और विभ्रम में जीने वाले लोगों के बारे में धर्मशास्त्रों में विस्तार से जानकारी मिलती है और ऐसे लोग मरने के बाद किस तरह की गति को प्राप्त होते हैं, यह ‍भी विस्तार से बताया गया है। आओ हम जानते हैं कुछ इसी टाइप के लोगों के बारे में।

अविश्‍वासी लोग : पहले प्रकार के विश्‍वासी लोग वे होते हैं, जो स्वयं सहित किसी पर भी विश्‍वास नहीं करते हैं। ऐसे लोग जिंदगी के दुखदायी मोड़ पर कभी भी किसी पर भी विश्वास कर बैठते हैं। ऐसे लोग अपनी जवानी में नास्तिक होते हैं। हो सकता है कि वे दिखावे के लिए ऐसे हों। खुद को आधुनिक घोषित करने के लिए ऐसे हों। लेकिन ऐसे लोग खुद पर भी भरोसा नहीं करते और ईश्वर पर भी नहीं। ये लोग मंदिर नहीं जाते। यदि वे कट्टर अविश्‍वासी हैं, तो उम्र के ढलान के अंतिम दौर में उन्हें पता चलता है कि सब कुछ खो दिया, अब ईश्‍वर हमें अपनी शरण में ले लें। ये अधार्मिक होते हैं।

आत्मविश्‍वास : ऐसे बहुत से लोग हैं, जो दूसरों पर नहीं, खुद पर ज्यादा भरोसा करते हैं। ये दूसरे प्रकार के विश्‍वासी लोग हैं। ये नास्तिक भी हो सकते हैं और तथाकथित आस्तिक भी। ये मंदिर जा भी सकते हैं और नहीं भी। इनके विचार बदलते रहते हैं। ये कभी किसी को सत्य मानते हैं, तो कभी अन्य किसी को तर्क द्वारा सत्य सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। ये नास्तिकों के साथ नास्तिक और आस्तिकों के साथ आस्तिक हो सकते हैं। ये लोग मानते हैं कि ईश्‍वर के बगैर भी जीवन की समस्याओं को वे स्वयं सुलझा सकते हैं। ये भी अधार्मिक होते हैं।

विश्‍वासी : अधिकतर लोगों को स्वयं और परमेश्वर पर भरोसा नहीं होता। वे कबूल करते हैं कि उनमें कोई सामर्थ्य या ज्ञान नहीं है, परंतु उनको विश्वास भी नहीं होता कि परमेश्वर उनके लिए कार्य करेगा। वे समझते हैं कि हम तो तुच्छ हैं, जो परमेश्वर होगा तो हमारे लिए कार्य नहीं करेगा। ऐसे विश्वासी भी प्रार्थनारहित जीवन जीते हैं। वे प्रार्थना भी करते हैं तो उनकी प्रार्थना में कोई विश्वास नहीं होता। विश्‍वास है लेकिन खुद को हीन समझते हैं।

दूसरे प्रकार के विश्‍वासी भी होते हैं, जो संपूर्ण रूप से परमेश्वर के होने में विश्वास तो करते ही हैं और वे अपने अच्छे और बुरे सभी कर्मों को परमेश्वर को ही समर्पण कर देते हैं। वे जरा भी भय, अविश्वास और भ्रम की भावना में नहीं जीते हैं। उनका विश्वास होता है कि परमेश्वर से बढ़कर कोई शक्ति नहीं और वह सभी को भरपूर रूप से आशीर्वाद देने वाला है। परमेश्वर कभी किसी का बुरा नहीं करता चाहे कोई कितना ही बुरा क्यों न हो। आदमी को उसके बुरे कर्मों या पापों की सजा तो स्वत: ही प्रकृति दे देती है।

ऐसे विश्‍वासी मानते हैं कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ है। हम जितना विनम्र होंगे वह उतना करीब होगा। हम जितना धार्मिक होंगे, वह हमारे उतना करीब होगा।
Show comments

क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है या अगले जन्म में?

वैशाख अमावस्या का पौराणिक महत्व क्या है?

शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में होंगे वक्री, इन राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

धरती पर कब आएगा सौर तूफान, हो सकते हैं 10 बड़े भयानक नुकसान

घर के पूजा घर में सुबह और शाम को कितने बजे तक दीया जलाना चाहिए?

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Varuthini ekadashi 2024: वरुथिनी व्रत का क्या होता है अर्थ और क्या है महत्व