नाथ पंथ नहीं था सनातन धर्म का विरोधी

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नाथपंथी शैव और शाक्त पंथ के अनुयायी हैं। भगवान शिव को आदिनाथ कहा जाता है। कुछ लोग यह भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहे हैं कि नाथपंथी तो सनातन धर्म के विरोधी थे। ऐसे लोगों को धर्म की जानकारी नहीं है। गुरु दत्तात्रेय नाथ पंथ के प्रथम योगी हैं।

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शंकराचार्य का दसनामी संप्रदाय, नाथ पंथ, उदासीन संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय सभी को मिलाकर सनातन धर्म बनता है। शैव और वैष्णवों में वैचारिक मतभेद चलते रहे हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि शैवपंथी सनातन धर्म के विरोधी थे।

नाथ पंथ और वैष्णव पंथ में विरोध जरूर रहा है, क्योंकि नाथपंथी शराब और मांस को वर्जित नहीं मानने के बारे में चुप रहते हैं जबकि वैष्णवों में यह सख्त रूप से वर्जित है। इसी तरह कुछ नियमों को लेकर दोनों में मतभेद हैं। जैसे कान छिदवाना नहीं छिदवाना, चोटी रखना नहीं रखना, रात्रि के कर्म करना या नहीं करना आदि।

बौद्ध और मध्यकाल में नाथपंथियों के कारण ही सनातन धर्म की रक्षा हुई थी। नाथों के कारण ही इस्लाम में सूफीवाद का प्रचलन हुआ। अफगानिस्तान, कश्मीर, तिब्बत, असम, त्रिपुरा, बांग्लादेश और बर्मा तक नाथपंथियों, गोसाइयों और गिरियों की बहुलता थी।

गुरु गोरक्षनाथ और शंकराचार्य ने समाज के पिछड़े तबकों के लोगों को धर्म की शिक्षा और दीक्षा देकर उन्हें साधु और संत बनाया। नवनाथ और दसनामी परंपरा ने मिलकर ही संपूर्ण भारत को धार्मिक आधार पर एक कर समाज से जाति भेदभाव मिटाया था।- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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