बजरंगबली हनुमानजी को इन्द्र से इच्छामृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान के अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे। राम दरबार में श्रीराम और सीता सिंहासन पर विराजित हैं और उनके एक ओर लक्ष्मण तो दूसरी ओर भरतजी खड़े हैं। नीचे बैठे हुए रामदूत हनुमानजी और शत्रुघ्न जी हैं।
हनुमानजी ने जहां त्रेतायुग में श्रीराम की आज्ञा से उनके सभी कार्य संपन्न किए वहीं जब श्रीरामजी कृष्ण रूप में जन्में तो हनुमानजी ने श्रीकृष्ण के आदेश पर अर्जुन, गरुढ़, चक्र और बलरामजी घमंड चूर चूर किया था वहीं उन्होंने वानरव द्वीत और पौंडक्रक को भी सबक सिखाया था।
कलिकाल में हनुमानजी ने जहां तुलसीदासजी को रामकथा लिखने के लिए प्रेरित किया वहीं उन्होंने उत्कल प्रदेश के राजा इंद्रदयुम्न को जगन्नाथ मंदिर बनाने और वहां पर भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के विग्रह को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था।
हनुमानजी आज भी अपने भक्तों की हर परिस्थिति में मदद करते हैं। द्वापर युग के भीम और अर्जुन के बाद कलियुग में भी ऐसे कई लोग हुए हैं जिन्होंने रामदूत हनुमानजी को साक्षात देखा है। जैसे माधवाचार्यजी, तुलसीदासजी, समर्थ रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और नीम करोली बाबा आदि।
1. त्रेतायुग में हनुमान : त्रेतायुग में तो पवनपुत्र हनुमान ने केसरीनंदन के रूप में जन्म लिया और वे राम के भक्त बनकर उनके साथ छाया की तरह रहे। वाल्मीकि 'रामायण' में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का उल्लेख मिलता है।
2. द्वापर में हनुमान : द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं। इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है। महाभारत में प्रसंग है कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाते हैं। इस तरह एक बार हनुमानजी के माध्यम से श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ की शक्ति के अभिमान का मान-मर्दन करते हैं। हनुमानजी अर्जुन का अभिमान भी तोड़ देते हैं। अर्जुन को अपने धनुर्धर होना का अभिमान था।
3. कलयुग में हनुमान : यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्घा और विश्वास से हनुमानजी का आश्रय ग्रहण कर लें तो फिर तुलसीदासजी की भांति उसे भी हनुमान और राम-दर्शन होने में देर नहीं लगेगी। कलियुग में हनुमानजी ने अपने भक्तों को उनके होने का आभास कराया है। ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे- 'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर। तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'