नरक वह स्थान है जहां पापियों की आत्मा दंड भोगने के लिए भेजी जाती है। दंड के बाद कर्मानुसार उनका दूसरी योनियों में जन्म होता है। स्वर्ग धरती के ऊपर है तो नरक धरती के नीचे। सभी नरक धरती के नीचे यानी पाताल भूमि में हैं।
इसे अधोलोक भी कहते हैं। अधोलोक यानी नीचे का लोक है। ऊर्ध्व लोक का अर्थ ऊपर का लोक अर्थात् स्वर्ग। मध्य लोक में हमारा ब्रह्मांड है। कुछ लोग इसे कल्पना मानते हैं तो कुछ लोग सत्य। लेकिन जो जानते हैं वे इसे सत्य ही मानते हैं, क्योंकि मति से ही गति तय होती है।
पुराणों में : गरुड़ पुराण का नाम किसने नहीं सुना? पुराणों में नरक, नरकासुर और नरक चतुर्दशी, नरक पूर्णिमा का वर्णन मिलता है। नरकस्था अथवा नरक नदी वैतरणी को कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए। इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है, जो पिता के रहते हुए भी किया जा सकता है।
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पाताल के नीचे बहुत अधिक जल है और उसके नीचे नरकों की स्तिथि बताई गई है। जिनमें पापी जीव गिराए जाते हैं। यों तो नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान हैं।
नरक का स्थान : महाभारत में राजा परीक्षिक्ष इस संबंध में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं तो वे कहते हैं कि राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोग में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम है वे अपने सेवकों के सहित रहते हैं। तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहां लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।
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श्रीमद्भागवत और मनुस्मृति के अनुसार नरकों के नाम- 1. तामिस्त्र, 2.अंधसिस्त्र, 3.रौवर, 4, महारौवर, 5.कुम्भीपाक, 6.कालसूत्र, 7.आसिपंवन, 8.सकूरमुख, 9.अंधकूप, 10.मिभोजन, 11.संदेश, 12.तप्तसूर्मि, 13.वज्रकंटकशल्मली, 14.वैतरणी, 15.पुयोद, 16.प्राणारोध, 17.विशसन, 18.लालभक्ष, 19.सारमेयादन, 20.अवीचि, और 21.अय:पान, इसके अलावा....22.क्षरकर्दम, 23.रक्षोगणभोजन, 24.शूलप्रोत, 25.दंदशूक, 26.अवनिरोधन, 27.पर्यावर्तन और 28.सूचीमुख ये सात (22 से 28) मिलाकर कुल 28 तरह के नरक माने गए हैं जो सभी धरती पर ही बताए जाते हैं।
इनके अलावा वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी कई नरककुंडों के नाम लिखे हैं- वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड और चक्रकुंड आदि। इन नरककुंडों की संख्या 86 है। इनमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं। उनके नाम हैं- रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अप्रतिष्ठ, अवीचि, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं।
हालांकि नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान माने गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रूधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं।
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कौन जाता है नरक : ज्ञानी से ज्ञानी, आस्तिक से आस्तिक, नास्तिक से नास्तिक और बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ज्ञान, विचार आदि से तय नहीं होता है कि आप अच्छे हैं या बुरे।
आपकी अच्छाई आपके नैतिक बल और कर्म में छिपी होती है। आपकी अच्छाई यम और नियम का पालन करने में निहित है। अच्छे लोगों में ही होश का स्तर बढ़ता है और वे देवताओं की नजर में श्रेष्ठ बन जाते हैं। लाखों लोगों के सामने अच्छे होने से भी अच्छा है स्वयं के सामने अच्छा बनना।
पुराणों अनुसार वेद, देवी-देवता और पितरों का अपमान करने वाले, वृक्षों को काटने वाले, छलपूर्वक जीवन यापन करने वाले, नक्षत्र विद्या से धन कमाने वाले, मदिरा का सेवन करने वाले, पापी, मूर्छि त और अधोगामी गति के व्यक्ति नरकों में जाते हैं। पापी आत्मा जीतेजी तो नरक झेलती ही है, मरने के बाद भी उसके पाप अनुसार उसे अलग-अलग नरक में कुछ काल तक रहना पड़ता है।
निरंतर क्रोध में रहना, कलह करना, सदा दूसरों को धोखा देने का सोचते रहना, शराब पीन ा, मांस भक्षण करना, दूसरों की स्वतंत्रता का हनन करना और पाप करने के बारे में सोचते रहने से व्यक्ति का चित्त खराब होकर नीचे के लोक में गति करने लगता है और मरने के बाद वह स्वत: ही नरक में गिर जाता है। वहां उसका सामना हजारों तपते-जलते नरकों से होता है।
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झूठी गवाही न दें : पुरणों अनुसार झूठी गवाही देने वाला मनुष्य रौरव नरक में पड़ता है। गोओं और सन्यासियों को कहीं बंद करके रोक रखने वाला पापी रोध नरक में जाता है। मदिरा पीने वाला शूकर नरक में और नर हत्या करने वाला ताल नरक में गिर जाता है।
गुरु पत्नी के साथ व्यभिचार करने वाला पुरुष तप्तकुम्भ नामक नरक में तड़पाया जाता है तथा जो अपने भक्त की हत्या करता है उसे तप्तलोह नरक में तपाया जाता है। गुरुजनों का अपमान करने वाला पापी महाज्वाल नरक में डाला जाता है।
गरूड़ पुराण अनुसार वेद शास्त्रों का अपमान करने और उन्हें नष्ट करने वाला लवण नामक नरक में गलाया जाता है। धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने वाला विमोहक नरक में जाता है। देवताओं से द्वेष रखने वाला मनुष्य कृमिभक्ष नरक में जाता है।
शास्त्र विरूद्ध कर्म : बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने मनमाने यज्ञकर्म, त्योहार, उपवास और पूजा-पाठ का अविष्कार कर लिया है तथा जो मनघड़ंत तांत्रिक कर्म भी करते हैं। ऐसे दूषित भावना से तथा शास्त्रविधि के विपरीत यज्ञ आदि कर्म करने वाले पुरुष कृमिश नरक में गिराए जाते हैं। इस प्रकार के शास्त्र निषिद्ध कर्मों के आचरणरूप पापों से पापी सहस्त्रों अत्यंत घोर नरकों में अवश्य गिरते हैं।
भोजन के नियमों का पलन करें : बहुत से मनुष्य भोजन करते व्यक्त किसी का स्मण नहीं करते और भोजन के नियमों को नहीं मानते इसका उनके जीवन पर प्रभाव पड़ता है। पुराणों में कहा गया है कि जो देवताओं तथा पितरों का भाग उन्हें अर्पण किए बिना ही अथवा उन्हें अर्पण करने से पहले ही भोजन कर लेता है, वह लालभक्ष नामक नरक में यमदूतों द्वारा गिराया जाता है।
आजकल लोग ज्यादा छली हो गए है। सब जीवों से व्यर्थ बैर रखने वाला तथा छल पूर्वक अस्त्र-शस्त्र का निर्माण करने वाला विशसन नरक में गिराया जाता है। असत्प्रतिग्रह ग्रहण करने वाला अधोमुख नरक में और अकेले ही मिष्ठान्न ग्रहण करने वाला पूयवह नरक में पड़ता है।
जानवरों की रक्षा करें : बहुत से लोग जानवरों को पालकर उनके बल पर अपना जीवन यापन करते हैं। आजकल मुर्गों और कुत्तों को बेचने और पालने का व्यापार भी चल रहा है। बकरा, मुर्गा, कुत्ता, बिल्ली तथा पक्षियों को जीविका के लिए पालने वाला मनुष्य भी पूयवह नरक में पड़ता है।
बहुत से लोग दूसरों के प्रति बैर भाव रखते है और उनका अहित करने की ही सोचते रहते हैं। पुराणों में कहा गया है कि दूसरों के घर, खेत, घास और अनाज में आग लगाता है, वह रुधिरान्ध नरक में डाला जाता है।
ज्योतिषियों से सावधान : ज्योतिषी विद्या का आजकल ज्यादा प्रचलन है। झूठ बोलकर धंधा करने वाले ज्योतिषियों की तो भरमार हो चली है। पुराणों अनुसार नक्षत्र विद्या तथा नट एवं मल्लों की वृत्ति से जीविका चलाने वाला मनुष्य वैतरणी नामक नरक में जाता है।
धन, ताकत और जवानी में अंधे और उन्मुक्त होकर दूसरों के धन का अपहरण करने वाले पापी को कृष्ण (अंधकार) नामक नरक में गिराया जाता है।
वृक्षों की रक्षा करें : पूरे विश्व में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। बहुत तेजी से वृक्षों को काटा जा रहा है। पुराणों अनुसार वृक्षों को काटने वाला मनुष्य असिपत्रवन में जाता है। वृक्षों में भी पीपल, बढ़, नीम, केल, अनार, बिल्व, आम, अशोक, शमी, नारियल, अनार, बांस आदि पवित्र वृक्षों को काटना तो घोर पाप माना गया है।
इसके अलावा जो कपटवृत्ति से जीविका चलाते हैं, वे सब लोग बहिज्वाल नामक नरक में गिराए जाते हैं। पराई स्त्री और पराए अन्न का सेवन करने वाला पुरुष संदर्श नरक में डाला जाता है। जो दिन में सोते हैं तथा वृत का लोप किया करते हैं और जो शरीर के मद से उन्मत्त रहते है, वे सब लोग श्वभोज नामक नरक में पड़ते हैं। जो भगवान् शिव और विष्णु को नहीं मानते, उन्हें अवीचि नरक में गिराया जाता है।
दरअसल, मनुष्य अपने कर्मों से ही उक्त नरकों में गिर जाते हैं। जैसी मति वैसी गति। जैसी गति वैसा नरक। नरकों से छुटकारा माने के लिए विद्वान लोग वेदों का पालन करने की सलाह देते हैं। वेद पठन, प्रार्थना और ध्यान से ही नरकों से बचा जा सकता है।