कौन रहता है पाताल लोक में, जानिए

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
धरती पर ही सात पातालों का वर्णन पुराणों में मिलता है। ये सात पाताल है- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। इनमें से प्रत्येक की लंबाई चौड़ाई दस-दस हजार योजन की बताई गई है। ये भूमि के बिल भी एक प्रकार के स्वर्ग ही हैं।
 
इनमें स्वर्ग से भी अधिक विषयभोग, ऐश्वर्य, आनंद, सन्तान सुख और धन संपत्ति है। यहां वैभवपूर्ण भवन, उद्यान और क्रीड़ा स्थलों में दैत्य, दानव और नाग तरह-तरह की मायामयी क्रीड़ाएं करते हुए निवास करते हैं। वे सब गृहस्थधर्म का पालन करने वाले हैं।
 
उनके स्त्री, पुत्र, बंधु और बांधव सेववकलोक उनसे बड़ा प्रेम रखते हैं और सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं। उनके भोगों में बाधा डालने की इंद्रादि में भी सामर्थ्य नहीं है। वहां बुढ़ापा नहीं होता। वे सदा जवान और सुंदर बने रहते हैं।
 
 
आगे पढ़े, कौन रहता है अतल, वितल और सुतल में....

अतल में मयदानव का पुत्र असुर बल रहता है। उसने छियानवें प्रकार की माया रची है। उसके वितल लोक में भगवान हाटकेश्वर नामक महादेवजी अपने पार्षद भूतगणों के सहित रहते हैं। वे प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी के साथ विहार करते रहते हैं। उन दोनों के प्रभाव से वहां हाट की नाम की एक सुंदर नदी बहती है।

वितल के नीचे सुतल लोक है। उसमें महायशश्वी पवित्रकीर्ति विरोचन के पुत्र बलि रहते हैं। वामन रूप में भगवान ने जिनसे तीनों लोक छीन लिए थे।

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सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। मयदानव विषयों का परम गुरु है। उसके नीचे महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का 'क्रोधवश' नामक एक समुदाय रहता है।

उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं। उनके नीचे रसातल में पणि नामके दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं। इनका देवताओं से सदा विरोध रहता है।

अंत में पढ़ें रसातल के नीचे पाताल में कौन रहता है....


रसातल के नीचे पाताल है। वहां शंड्‍ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनन्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त आदि बड़े क्रोधी और बड़े बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इनमें वासुकि प्रधान है।

उनमें किसी के पांच किसी के सात, किसी के दस, किसी के सौ और किसी के हजार सिर हैं। उनके फनों की दमकती हुई मणियां अपने प्रकाश से पाताललोक का सारा अंधकार नष्टकर देती हैं।

- संदर्भ भागवत पुराण
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