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तीर्थयात्रा क्या और क्यों?

अनिरुद्ध जोशी
सनातन हिन्दू धर्म में 4 पुरुषार्थ बताए गए हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हीं 4 पुरुषार्थों की 4 आश्रमों में शिक्षा मिलती है। ये 4 आश्रम हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्‍थ और संन्यास। इंसानी जिंदगी को इन्हीं 4 प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है। जो मनमाने तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। तीर्थ से ही वैराग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
 
 
हमारे ऋषि-मुनि मानवी मनोविज्ञान के कुशल मर्मज्ञ यानी कि जानकार होते थे। प्राचीन ऋषि-मुनि लिबास से भले ही साधु-संत थे किंतु सोच और कार्यशैली से पूरी तरह से वैज्ञानिक थे। दुनिया को मोक्ष का मार्ग वैदिक ऋषियों ने ही बताया। दुनिया के किसी भी धर्म की अंतिम मान्यता यही है कि आत्मज्ञान या पूर्णता की प्राप्ति ही इंसानी जिंदगी का एकमात्र अंतिम ध्याय यानी कि मकसद है।
 
धरती पर पहली बार वैदिक ऋषियों ने धर्म को एक व्यवस्था दी और वैज्ञानिक विधि-विधान निर्मित किए। दुनिया के बाद के धर्मों ने उनकी ही व्यवस्था और धार्मिक विधि-विधान को अपनाया। उन्होंने संध्यावंदन, व्रत, वेदपाठ, तीर्थ, 24 संस्कार, उत्सव, यम-नियम, ध्‍यान आदि को निर्मित किया और इसे धर्म का आधार स्तंभ बनाया। उनके ही बनाए संस्कारों और नियमों को आज सभी धर्म के लोग अपना रहे हैं। धर्म के इन्हीं नियमों में से एक है तीर्थयात्रा।
 
 
अगले पन्ने पर जानिए तीर्थयात्रा का मकसद...
 

अनुभव का विस्तार : तीर्थयात्रा की परंपरा महान और वैज्ञानिक थी, लेकिन अब उसका असली स्वरूप कहीं खो-सा गया है। तीर्थयात्रा के लक्ष्य, उद्देश्य और परिणाम होते थे। इसमें जनता कुछ दिन संतों के सान्निध्य में रहकर अपने धार्मिक और सांसारिक ज्ञान का विस्तार करती थी। इंसान जब तक दायरे से बाहर निकलकर बाहर की दुनिया से रूबरू नहीं होता, उसकी सोच, समझ और मानसिक क्षमता विकसित नहीं हो सकती अत: तीर्थयात्रा का महत्वपूर्ण मकसद अपने ज्ञान को व्यापक बनाना है।

समाजसेवा की भावना : तीर्थयात्रा का मकसद मात्र धार्मिक कर्मकांड और मनोरंजन ही नहीं है, पर्यटन तो कतई नहीं। आजकल लोगों ने तीर्थस्थलों पर पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना शुरू कर दिया है जबकि अपने प्रारंभिक काल में तीर्थयात्रा का प्रमुख मकसद समाज की उन्नति या भलाई करना भी होता था। यात्रा के मार्ग में आने वाले गांवों में तीर्थयात्री संध्या के समय कई ज्ञानवर्धक और रोचक कार्यक्रमों का आयोजन करते थे। इससे लोगों को धर्म, विज्ञान और संस्कृति को जानने का मौका मिलता था।

स्वास्थ्य और स्वाध्याय का तीर्थ : काया के सेहतमं‍द बने रहने से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधा जा सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के दम पर ही कोई इंसान कुछ नया और महान कार्य कर सकता है। तीर्थ के लिए चुने गए अधिकांश स्थान ऐसी जगहों पर हैं, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद होते हैं। अत: तीर्थयात्रा के दौरान स्वाध्याय अर्थात स्वयं का अध्ययन करने का मौका ‍भी मिलता है ।

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