भारत की महानता के 5 बड़े कारण, अभी संभालने की जरूरत है

अनिरुद्ध जोशी
भारत प्राचीनकाल से ही एक महान देश रहा और आज भी है। भारत की महानता के कई कारण है। उन कई कारणों में से कुछ ऐसे बड़े कारण है जिन पर विचार किए जाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत की जनसंख्या 135 करोड़ है। ये 135 करोड़ लोग मिलकर भारत को कितना लाभ पहुंचाते हैं और कितना नुकसान करते हैं यह सोचने वाली बात है। यदि हम अभी नहीं जागरूक हुए तो स्थिति और बिगड़ जाएगी।
 
 
1.भारत की अनूठी प्रकृति :- 
दुनिया में एकमात्र भारत ही ऐसा देश है जहां प्रकृति के हर रंग को देखा जा सकता है। यहां एक ओर समुद्र तो दूसरी ओर बर्फीले हिमालय है। एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घने जंगल है। एक ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ तो दूसरी ओर मैदानी इलाके है। प्रकृति के ऐसे सारे रंग किसी अन्य देश में नहीं है। भारतीय मौसम दुनिया के सभी देशों के मौसम से बेहतर है। सिर्फ यहीं पर प्रमुख रूप से चार ऋतुएं होती है। विदेशी यहां आकर भारत के वातावरण से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
 
 
प्राचीनकाल से ही भारतीय लोग साधना या ध्यान करने के लिए हिमालय की शरण में जाते रहे हैं। हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती।
 
 
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारतीय लोगों ने भारत की भूमि को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमने अपने अद्भुत और महत्वपूर्ण पहाड़, जंगल, रेगिस्तान, नदी और अन्य जल स्रोतों को लगभग नष्ट कर दिया है। हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। हमने प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन करके इस भारत भूमि के साथ जो अत्याचार किया है उसका भुगतान आने वाले कुछ वर्षों में करना होगा।
 
 
2.भारत का अध्यात्मिक ज्ञान, भाषा और संस्कृति :- 
प्राचीनकाल से ही यूनानी, रोमन और अरबी लोग भारत में ज्ञान, दर्शन, आयुर्वेद और अध्यात्म की तलाश में आते रहे हैं। यहां की समृद्ध भाषा और संस्कृति में रचे-बसे ये लोग अपने देश भी भी इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते रहे हैं। भारत में हिन्दूकुश पर्वतमाला दो संस्कृतियों का मिलन स्थल था। यहां प्राचीनकाल में कई विश्वविद्यालय, गुरुकुल और आश्रम हुआ करते थे। अध्यात्म, चमत्कार और सिद्धियों के बारे में भारत की ख्याती दूर-दूर तक फैली थी। भारत में ध्यान, योग और अध्यात्म विद्या सीखने के लिए अन्य देशों की अपेक्षा उचित वातावरण है। अध्यात्म की इसी तलाश के लिए हजारों विदेशी यहां आकर भारत के वातावरण से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
 
 
वेद, उपनिषद् और गीता पूर्णत: एक आध्यात्मिक पुस्तक है जोकि मनुष्य को सच्चे ज्ञान के मार्ग को बताती है। जिन्होंने भी इन्हें गंभीरता से पढ़ा और समझा है वही समझ सकता है कि धर्म, रहस्य, आत्मा, परमात्मा और मोक्ष क्या है। भारत के अध्यात्मिक और दार्शनिक ज्ञान को संवरक्षित और प्रचारित करने की आवश्यकता है। इनमें से कुछ ज्ञान ऐसा है जो कि अब लुप्तप्राय है।
 
 
भारतीय भाषा, संस्कृति, धर्म और दर्शन दुनिया के अन्य धर्म और दर्शन से बिल्कुल अलग है। यह हरे-भरे फलों से लदे सुव्य‍वस्थित जंगल की तरह है। भारतीय भाषा और उसका व्याकरण अन्य विदेशी भाषाओं से कहीं ज्यादा सुव्यवस्‍थित और वैज्ञानिक है। भारतीय लिपियों में देवनागरी, ब्राह्मी, तमिल, बांग्ला, तेलगु, कन्नड़, गुरुमुखी आदि लिपियां बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह गौर करने वाली बात है कि भाषा और लिपि ही हमारे धर्म, ज्ञान और संस्कृति का आधार है। भाषा मरी तो उसके साथ समूची राष्ट्र अपने ज्ञान सहित मर जाएगा। इसीलिए ज्ञान के साथ ही भाषा का संवरक्षण और विकास जरूरी है।
 
 
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत का व्यक्ति भारतीय भाषा, संस्कृति, अध्‍यात्म और धर्म से दूर होता गया है। यहां के लोगों में अब दर्शन और धर्म को जानने की उत्सुकता, जिज्ञासा, मुमुक्षा पूर्णत: लुप्त हो चली है। इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। देश का युवा आधुनिकता के नाम पर पश्‍चिमी संस्कृति, भाषा और धर्म का लबादा ओड़कर देश को एक घातक रास्ते पर लेकर चला गया है। निश्चित ही नशाखोरी और भोगवादी संस्कृति से देश का पतन होना तय है। अध्यात्म से दूर भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। भारतीय अब धर्म को साधने हैं सिर्फ अपने स्वार्थ हेतु। उनके मन में अध्यात्म कम लेकिन साम्प्रदायिकता, जातिवाद, कर्मकांड, ज्योतिष की नकारात्मक धारणाओं ने ज्यादा घर कर लिया है। वेदों से दूर रहकर भारतीयों ने अपने लिए कई तरह के जाल बून लिए हैं।
 
 
3.रहस्यमयी और रोचक कथा, कहानियां :- 
प्राचीन काल से ही भारत में कथा और कहानियों के माध्यम से व्यक्ति को शिक्षित, समझदार, संवेदनशील, साहसी और जिम्मेदार बनाने का प्रयास किया जाता रहा है, लेकिन वर्तमान में वे सभी कथा कहानियों की किताबें अब दूर हो गई है। जैसे अब कोई नहीं पड़ता उपनिषद की कथाएं, पंचतंत्र, बेताल या वेताल पच्चीसी, जातक कथाएं, सिंहासन बत्तीसी, हितोपदेश, कथासरित्सागर, संस्कृत सुभाषित, तेनालीराम की कहानियां, शुकसप्तति आदि।
 
इसके अलावा गहन गंभीर ज्ञान पर आधारित कामसूत्र, कामशास्त्र, रावण संहिता, भृगु संहिता, विमान शास्त्र, योग सूत्र, विज्ञान भैरव तंत्र, परमाणु शास्त्र, शुल्ब सूत्र, श्रौतसूत्र, अगस्त्य संहिता, सिद्धांतशिरोमणि, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, च्यवन संहिता, शरीर शास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, औषधि शास्त्र, रस रत्नाकर, रसेन्द्र मंगल, कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार, योगाष्टक, अष्टाध्यायी, त्रिपिटक, जिन सूत्र, समयसार, लीलावती, करण कुतूहल, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, विशाखा दत्ता का मुद्रा राक्षस, कल्हण की राजतरंगिणी राजतरंगिणी, पाणिनि की अष्टाध्यायी, मार्गसंहिता, पतंजलि का महाभाष्य, कालिदास का मालविकाग्निमित्रम्, शुक्रनीतिसार, बाणभट्ट का हर्ष चरित, कादम्बरी, हरिषेण की प्रशस्ति आदि लाखों ऐसी किताबें हैं जिनके दम पर आज विज्ञान, तकनीक आदि सभी क्षेत्रों में प्रगति हो रही है।
 
 
उक्त किताबों के आधार पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पहिया, बटन, रूलर स्केल, शैम्पू, विमान, नौका, जहाज, व्यंजन, रथ, बैलगाड़ी, भाषा, व्याकरण, शून्य और दशमलव, शल्य चिकित्सा, हीरे का खनन, खेती करना, रेडियो, बिनारी कोड, स्याही, धातुओं की खोज, प्लास्टिक सर्जरी, अस्त्र-शश्त्र, बिजली, ज्यामिती, गुरुत्वाकर्षन का नियम, रिलेटिविटी का सिद्धांत, आयुर्वेद चिकित्सा, पृथ्वी का सूर्य का चक्कर लगाना, ब्रह्मांड की लंबाई चौड़ाई नापना, कैलेंडर, पंचाग, परमाणु सिद्धांत, वाद्य यंत्र, पाई के मूल्य की गणना, लोकतंत्र की धारणा आदि कई सिद्धांत और अविष्कारों का जन्म भारत में हुआ है। लेकिन वर्तमान में यह बात कहने से पश्‍चिमी सभ्यता की मानसिकता में जीने वाले लोग रूढ़िवादी समझते हैं। जिस देश के लोगों में अपने इतिहास को लेकर जागरूकता और गौरव बोध नहीं है वह देश अपने अस्तित्व को नष्ट करने की राह पर होता है।
 
 
4.कला और खेल :-
कलारिपट्टू (मार्शल आर्ट), भाषा, लेखन, नाट्य, गीत, संगीत, नृत्यकला, नौटंकी, तमाशा, स्थापत्यकला, चित्रकला, मूर्तिकला, पाक कला, साहित्य, बेल-बूटे बनाना, नृत्य, कपड़े और गहने बनाना, सुगंधित वस्तुएं-इत्र, तेल बनाना, नगर निर्माण, सूई का काम, बढ़ई की कारीगरी, पीने और खाने के पदार्थ बनाना, पाक (व्यंजन) कला, सोने, चांदी, हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा करना, तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना आदि कलाओं का जन्म भारत में हुआ है।
 
 
यदि हम खेल की बात करें तो शतरंज, फुटबॉल, कबड्डी, सांप-सीढी का खेल, ताश का खेल, तलवारबाजी, घुड़सवारी, धनुर्विद्या, युद्ध कला, खो-खो, चौपड़ पासा, रथ दौड़, नौका दौड़, मल्ल-युद्ध, कुश्ती, तैराकी, भाला फेंक, आखेट, छिपाछई, पिद्दू, चर-भर, शेर-बकरी, चक-चक चालनी, समुद्र पहाड़, दड़ी दोटा, गिल्ली-डंडा, किकली (रस्सीकूद), मुर्ग युद्ध, बटेर युद्ध, अंग-भंग-चौक-चंग, गोल-गोलधानी, सितौलिया, अंटी-कंचे, पकड़मपाटी, पोलो या सगोल कंगजेट, तीरंदाजी, हॉकी, गंजिफा, आदि सैकड़ों खेलों का जन्म भारत में हुआ है। लेकिन इतिहास की किताबों में बच्चों को यह नहीं पढ़ाया जाता। किसी भी देश को अपने यहां जन्में खेल के इतिहास को बार-बार निश्चित ही प्रचारित और प्रसारित करना करना चाहिए क्योंकि इतिहास को संवरक्षित रखने का यह भी एक तरीका है। आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपके देश की उपलब्धियों को किसी कोई देश का ठप्पा लगते जाएगा और ऐसा हो भी रहा है।
 
 
5.प्राचीन पुरातात्विक अवशेष :-
अखंड भारत (पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित) में कई प्राचीन रहस्यमी मंदिर, स्तंभ, महल और गुफाएं हैं। बामियान, बाघ, अजंता-एलोरा, एलीफेंटा और भीमबेटका की गुफाएं, 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्तिपीठों के अलावा कई पुरातात्विक महत्व के स्थल, स्मारक, नगर, महल आदि को संवरक्षित कर इनके इतिहास को लिखे जाने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ मिस्र के पिरामिड और स्मारकों पर लगातार शोध होता रहता है और उनके संवर‍क्षण की प्रक्रिया भी चलती रहती है। इस सब पर कई शोध किताबें लिखे जाने का सिलसिला भी चलता रहता है।
 
 
सिंधुघाटी की सभ्यता की बात करें तो मेहरगढ़, हड़प्पा, मोहनजोदेड़ो, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ से भी कहीं ज्यादा प्राचीन स्थानों की वर्तमान में खोज हुई है। बुर्जहोम, गुफकराल, चिरांद पिकलीहल और कोल्डिहवा, लोथल, कोल्डिहवा, महगड़ा, रायचूर, अवंतिका, नासिक, दाइमाबाद, भिर्राना, बागपद, सिलौनी, राखीगढ़ी, बागोर, आदमगढ़, भीमबैठका आदि ऐसे सैकड़ों स्थान है जहां पर हुई खुदाई से भारतीय इतिहास, धर्म और संस्कृति के नए राज खुले हैं। इन स्थानों से प्राप्त पुरा अवशेषों से पता चलता है कि 9000 ईसा पूर्व भारतीय संस्कृति और सभ्यता अपन चरम पर थी। बागपत और सिलौनी से हाल ही में महाभारत काल का एक रथ और उसके पहिये पाए गया है। इनकी जांच करने के बाद पता चला है कि यह ईसा से लगभग 3500 वर्ष पूर्व के हैं। तांबे के पहिये आज भी वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं।
 
 
दरअसल, भारत को अपने पुराअवशेष और स्मारकों को अच्छे से संवरक्षित रखने की जरूरत है। उक्त सभी की जानकारी का एक डेटाबेस भी तैयार कर भारतीय इतिहास पर फिर से शोध कार्य किया जाने की जरूरत है। हालांकि शोध कार्य तो सतत जारी ही रहना चाहिए लेकिन जरूरत हमें इस बात कि है कि वर्तमान तकनीक और खोज पर आधारित इतिहास को फिर से क्रमबद्ध लिखा जाए और उसे स्कूली और कॉलेज की किताबों में भी अपडेट किया जाए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो निश्चित ही हम अपने देश के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। पहले लिखे गए इतिहस से भारत और भारततीय समाज का विभाजन ही ज्यादा हुआ है।

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