गुप्त वंश को जानिए...

Webdunia
गुप्त साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण राजा हुए। पहले समुद्रगुप्त और दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीय। शुंग वंश के पतन के बाद सनातन संस्कृति की एकता को फिर से एकजुट करने का श्रेय गुप्त वंश के लोगों को जाता है। गुप्त वंश की स्थापना 320 ई. लगभग चंद्रगुप्त प्रथम ने की थी और 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। इस काल में कला, विज्ञान, धर्म और साहित्य का खूब विकास हुआ।
 
इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 ई.) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। लादित्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। आरंभ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन कर लिया था। इसके बाद दक्षिण में कांजीवरम के राजा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया था।
 
गुप्त वंश के सम्राटों में क्रमश: श्रीगुप्त, घटोत्कच, चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम (महेंद्रादित्य) और स्कंदगुप्त हुए। स्कंदगुप्त के समय हूणों ने कंबोज और गांधार (उत्तर अफगानिस्तान) पर आक्रमण किया था। हूणों ने अंतत: भारत में प्रवेश करना शुरू किया। हूणों का मुकाबला कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा करना स्कन्दगुप्त के राज्यकाल की सबसे बड़ी घटना थी। स्कंदगुप्त और हूणों की सेना में बड़ा भयंकर मुकाबला हुआ और गुप्त सेना विजयी हुई। हूण कभी गांधार से आगे नहीं बढ़ पाए, जबकि हूण और शाक्य जाति के लोग उस समय भारत के भिन्न- भिन्न इलाकों में रहते थे।
 
स्कंदगुप्त के बाद उत्तराधिकारी उसका भाई पुरुगुप्त (468-473 ई.) हुआ। उसके बाद उसका पुत्र नरसिंहगुप्त पाटलीपुत्र की गद्दी पर बैठा जिसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर राज्य में फिर से बौद्ध धर्म की पताका फहरा दी थी। उसके पश्चात क्रमश: कुमारगुप्त द्वितीय तथा विष्णुगुप्त ने बहुत थोडे़ समय तक शासन किया। 477 ई. में बुद्धगुप्त, जो शायद पुरुगुप्त का दूसरा पुत्र था, गुप्त-साम्राज्य का अधिकारी हुआ। ये सभी बौद्ध हुए। इनके काल में बौद्ध धर्म को खूब फलने और फूलने का मौका मिला।
 
बुद्धगुप्त का राज्य अधिकार पूर्व में बंगाल से पश्चिम में मालवा तक के विशाल भू-भाग पर था। यह संपूर्ण क्षेत्र में बौद्धमय हो चला था। यहां शाक्यों की अधिकता थी। सनातन धर्म का लोप हो चुका था। जैन और बौद्ध धर्म ही शासन के धर्म हुआ करते थे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Falgun month: फाल्गुन मास के व्रत त्योहारों की लिस्ट

हवन द्वारा कैसे कर सकते हैं भाग्य परिवर्तन? जानिए किस हवन से होगा क्या फायदा

क्यों चित्रकूट को माना जाता है तीर्थों का तीर्थ, जानिए क्यों कहलाता है श्री राम की तपोभूमि

मीन राशि पर सूर्य, शनि, राहु की युति: क्या देश दुनिया के लिए खतरे का है संकेत?

महाकुंभ से लौटने के बाद क्यों सीधे जाना चाहिए घर, तुरंत ना जाएं इन जगहों पर

सभी देखें

धर्म संसार

17 फरवरी 2025 : आपका जन्मदिन

17 फरवरी 2025, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Horoscope: फरवरी का तीसरा सप्ताह 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा, पढ़ें अपना साप्ताहिक भविष्यफल

Aaj Ka Rashifal: आज इन 3 राशियों को मिलेगी हर कार्य में सफलता, पढ़ें 16 फरवरी का दैनिक राशिफल

कौन है देश का सबसे अमीर अखाड़ा, जानिए कहां से आती है अखाड़ों के पास अकूत संपत्ति

अगला लेख