बनारस के डोम की कहानी जिन्हें मोदी भी मानते हैं अपना गुरु
, शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019 (13:41 IST)
सांकेतिक चित्र
बनारस में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए दो घाट काफी प्रसिद्ध हैं। पहला है- यहां का मणिकर्णिका घाट और दूसरा है- राजा हरीश्चंद्र घाट। यहां दाह-संस्कार कराने वालों को 'डोम राजा' कहकर पुकारा जाता है। डोम जाति कोई अछूत जाति नहीं है। हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार मृतक के अंतिम संस्कार के समय इनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। डोम जाति का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। कहा जाता है कि वैदिक काल में इनका संबंध एक बड़े राजवंश से था। हालांकि इस संबंध में और भी कथाएं मिलती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने नामांकन में एक प्रस्तावक डोम जाति से लिया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से नामांकन भरते वक्त दाह-संस्कार करने वाले डोम राजा जगदीश चौधरी को अपना प्रस्तावक बनाया है। चौधरी ने कहा कि मोदी पहले पीएम हैं जिन्होंने हम जैसों की तरफ ध्यान दिया है। मणिकर्णिका घाट पर डोम राजा के नाम से प्रसिद्ध जगदीश 3 दशक से दाह-संस्कार कर रहे हैं। पीएम मोदी ने 'मैं हूं चौकदार' कैंपन को पिछले चुनाव में चलाए गए 'चायवाला' कैंपेन की तरह ही चलाया है। डोम जाति को श्मशान का चौकीदार भी माना जाता है। इसीलिए उन्होंने चौकीदार को अपना प्रस्तावक बनाया है।
'डोम राजा' को धरती का यमराज कहा जाता है, जो शवों का दाह-संस्कार करके मृत आत्माओं को मोक्ष का रास्ता दिखाते हैं। पर क्या कभी सोचा है कि शवों को आग देने जैसा काम करने वाला व्यक्ति 'राजा' कैसे हो सकता है?
डोम का अर्थ- ड+ओम=डोम। इस तरह डोम शब्द से ओम (ॐ) की ध्वनि निकलती है। 'ओम' ईश्वर का नाम है। डोम में ड+अ+उ+ओ+म=डोम, उ=शिव और ओम=ओंकार। वेदों का महामंत्र जिसका उच्चारण हुआ शिव ओम। अर्थात ओम से सृष्टि तथा शिव से सृष्टि का संहार।
पौराणिक कथा- डोम राजाओं की पौराणिक कथा भगवान शिव और राम के पूर्वज राजा हरीशचंद्र से जुड़ी है। शिव कथा के अनुसार अनादिकाल में जब काशी का नाम आनंदवन हुआ करता था, उस समय भगवान शंकर माता पार्वती के साथ यहां भ्रमण के लिए आए थे और मणिकर्णिका घाट पर स्थित कुंड को उन्होंने अपनी जटाओं से भरा था जिसके बाद माता पार्वती ने इसमें स्नान किया।
स्नान के समय माता पार्वती का कुंडल इसमें गिर गया था जिसे कल्लू नाम के एक ब्राह्मण महाराज ने उठा लिया। भगवान शंकर के क्रोधित होने के बावजूद कल्लू ने कुंडल के बारे में नहीं बताया। तब उन्होंने कल्लू और उसकी आने वाली सभी पीढ़ियों को चांडाल होने का श्राप दे दिया। उस दिन एक ब्राम्हण डोम बना और तब से ये डोम चिताओं को अग्नि देने लगे। आज उसी कल्लू डोम के 300 से ज्यादा परिवार हैं और हर परिवार का पुरुष सदस्य चिताओं को अग्नि देने का काम करता है।
एक अन्य कथा के अनुसार डोम नामक एक राजा ने ऐसा किया था तो उसे शाप मिला था। तभी से इस वंश के राजा या कहें कि जाति श्मशान के कार्य ही करती है। यहां वे संस्कारों के साथ कर वसूली करते हैं। शिव श्मशान घाट में धूनी रमाकर, भभूत लगाकर, नागों का माला पहनकर रहते थे एवं तुरही उनका वाद्य यंत्र था। इस प्रकार डोम भी श्मशान घाट में मुर्दे जलाने का काम करते हैं तथा तुरही बांसुरी बजाने का काम करते हैं। डोम जाति के देवता शिव, कालभैरव, काली, क्षेत्रज्ञ, यम आदि हैं।
दूसरी कथा राजा हरीशचंद्र से जुड़ी है। हरीशचंद्र के कारण ही डोम के आगे 'राजा' लगने लगा। ऋषि विश्वामित्र द्वारा राजा हरीशचंद्र के धर्म की परीक्षा लेने के लिए उनसे दान में उनका संपूर्ण राज्य मांग लिया गया था।
दान में राज्य मांगने के बाद भी विश्वामित्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनसे दक्षिणा भी मांगने लगे। इस पर हरीशचंद्र ने अपनी पत्नी, बच्चों सहित स्वयं को बेचने का निश्चय किया और वे काशी चले गए, जहां पत्नी व बच्चों को एक ब्राह्मण को बेचा व स्वयं को डोम राजा के यहां बेचकर मुनि की दक्षिणा पूरी की। उस काल में डोम को 'चांडाल' भी कहा जाता था, क्योंकि वे श्मशान में रहते थे।
हरीशचंद्र श्मशान में कर वसूली का काम करने लगे। इसी बीच पुत्र रोहित की सर्पदंश से मौत हो जाती है। पत्नी श्मशान पहुंचती है, जहां कर चुकाने के लिए उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं रहती। हरीशचंद्र अपने धर्म का पालन करते हुए कर की मांग करते हैं। इस विषम परिस्थिति में भी राजा का धर्म-पथ नहीं डगमगाया।
विश्वामित्र अपनी अंतिम चाल चलते हुए हरीशचंद्र की पत्नी को डायन का आरोप लगाकर उसे मरवाने के लिए हरीशचंद्र को काम सौंपते हैं। इस पर हरीशचंद्र आंखों पर पट्टी बांधकर जैसे ही वार करते हैं, स्वयं सत्यदेव प्रकट होकर उसे बचाते हैं, वहीं विश्वामित्र भी हरीशचंद्र के सत्यपालन धर्म से प्रसन्न होकर सारा साम्राज्य वापस कर देते हैं। हरीशचंद्र के शासन में जनता सभी प्रकार से सुखी और शांतिपूर्ण थी। यथा राजा तथा प्रजा।
डोम जाति और राजवंश का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है, लेकिन इस जाति का गुलामी के काल में पतन होता गया और आज इन्हें निम्न जाति का माना जाता है।
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