हिन्दू धर्म की कहानी-6

बाली था एक महान सम्राट

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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13,800 विक्रम संवत पूर्व नील वाराह अवतार के काल में जब प्रलयकाल का जल उतर गया, तब सुगंधित वन और पुष्कर-पुष्करिणी (पोखरा-पोखरी) सरोवर निर्मित हुए और फिर ब्रह्मा ने अपने कुल का विस्तार किया। ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की पुत्री से शिव ने विवाह किया। ब्रह्मा के दूसरे पुत्र भृगु की पुत्री लक्ष्मी से विष्णु ने विवाह किया। तीनों और इनके कुल के लोगों ने धरती पर धर्म का इतिहास रचा।

वराह कल्प की शुरुआत में 3 अवतार हुए- नील वराह, आदि वराह और श्वेत वराह। उक्त तीनों विष्णु के अवतारों के समय कई घटनाएं घटीं। इसके बाद वामन काल की शुरुआत होती है जबकि असुर राजा बाली ने देवताओं को हराकर संपूर्ण लोक पर असुरों का राज कायम कर दिया था।

बाली का जीवन : दक्षिण भारत का राजा बाली एक श्रेष्ठ शासक था लेकिन उसकी देवताओं से नहीं बनती थी। बाली ने देवताओं से युद्ध किया और उनसे धरती का संपूर्ण भू-भाग छीन लिया और तब विष्णु ने अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिया जिसे त्रिविक्रम कहा गया। ये त्रिविक्रम ही वामन थे। भगवान वामन अदिति के 12 महान पुत्रों में से एक थे। अदिति कश्यप ऋषि की पत्नी थी। कश्यप की दूसरी पत्नी दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का जन्म हुआ था। बाली हिरण्यकश्यप का परपोता था।

राखी के त्योहार को 'बलेवा' भी कहा जाता है। देवी लक्ष्मी राजा बाली की सौतेली बहन थीं। देवी लक्ष्मी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बाली को राखी बांधकर उनसे अपने स्वामी को स्वर्गलोक नहीं त्यागने का वचन लिया था। बहन की कामना जानकर राजा बाली ने विष्णु देव से स्वर्गलोक में ही रहने की विनती की और इस तरह उन्होंने अपनी बहन के सुहाग की रक्षा की।

इस घटना से पता चलता है कि बाली कितना शक्तिशाली था। उसकी शक्ति के कारण ही भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा। 12 बार देवासुर संग्राम हुआ। अंतिम बार हिरण्यकशिपु के परपोते और प्रह्लाद के पोते और विरोचन के पुत्र राजा बाली के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ और देवता हार गए, तब संपूर्ण जम्बूद्वीप सहित संपूर्ण धरती पर असुरों का राज हो गया। इस जम्बूद्वीप के बीच के स्थान में था इलावर्त राज्य जिस पर देवताओं का शासन था। इसके पास ही दक्षिण में देवलोक और गंधर्वलोक थे। सभी पर राजा बाली का शासन हो चला था और उसके शासन में देवता और देव जाति के लोगों को किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं थी।

देवताओं के अनुग्रह पर विष्णु ने वामन अवतार लेकर दानवीर राजा बाली से दान में 3 पग धरती मांग ली थी। बाली ने हंसते हुए कहा था बस 3 पग? शुक्राचार्य ने बाली को इसके लिए सतर्क किया था। उन्होंने कहा कि वामन रूप में जिन्हें तू ब्राह्मण समझकर दान देने चला है, असल में वे विष्णु हैं और तुझे उनके छल से सतर्क रहना चाहिए। लेकिन बाली ने शुक्राचार्य की एक नहीं सुनी और ब्राह्मणरूपी वामन को कहा कि आप जहां भी चाहे ले लीजिए 3 पग धरती। वामन ने अपना विराट रूप धरा और 2 पग में धरती और स्वर्ग को नाप दिया और फिर बोले राजन अपना तीसरा पग कहां रखूं?

तब राजा बाली ने महादानी होने का परिचय देते हुए तीसरे पग के सामने अपने आपको समर्पित कर दिया, तब विष्णु ने उन्हें तीसरे पग के साथ पाताल का राजा नियुक्त किया और उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। बाली आज के अरब राष्ट्र के संयुक्त अरब क्षे‍त्र में अपने कुल गुरु शुक्राचार्य के साथ रहने लगा और उसने वहां कई वर्षों तक शासन किया।

अध्यात्म रामायण के अनुसार वामनावतार महाबाली के ग्रह सुताल के द्वारपाल बन गए और सदैव बने रहेंगे। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।
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