पारसी देश ईरान कैसे बना मुस्लिम राष्ट्र?

WD Feature Desk
बुधवार, 11 दिसंबर 2024 (13:23 IST)
History of iran: ईरान की सीमा हर काल में घटती-बढ़ती रही है। आज का ईरान प्राचीन काल के ईरान से बहुत भिन्न है। प्राचीन काल के ईरान को सबसे पहले सिकंदर ने ध्वस्त किया और फिर बाद में तुर्क एवं अरब के लोगों ने नेस्तनाबूद कर दिया। जब अरब के खलिफाओं ने अपने धर्म का विस्तार किया तो आसपास के कई देशों को फतह करने के बाद ईरान को भी फतह कर लिया। ईरान अब वर्तमान में एक शिया मुस्लिम देश है।ALSO READ: बांग्लादेश में कितने हैं शक्तिपीठ और हिंदुओं के खास मंदिर एवं तीर्थ?
 
1. ईरान का प्राचीन धर्म है पारसी धर्म। इसकसी  ऋग्वेद और जेंद अवेस्ता के अलावा पारसी और हिन्दुओं के प्राचीन इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि अफगानिस्तान और ईरान के बीच का क्षे‍त्र जो तुर्कमेनिस्तान तक को जाता है, पहले देवताओं और असुरों के लिए युद्ध का क्षे‍त्र हुआ करता था। असुरों का पारस्य से लेकर अरब-मिस्र तक शासन था और देवताओं से उनकी प्रतिद्वंद्विता चलती रहती थी। कैस्पियन सागर के आसपास के क्षेत्र के लिए लड़ाई चलती रहती थी। यही कारण है कि अत्यंत प्राचीन युग के ईरानियों और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना और कर्मकांड में कोई भेद नजर नहीं आता।
 
2. अत्यंत प्राचीन युग के ईरानियों और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना और कर्मकांड में कोई भेद नजर नहीं आता। 'जेंद अवेस्ता' में भी वेद के समान गाथा (गाथ) और मंत्र (मन्थ्र) हैं। इसके कई विभाग हैं जिसमें गाथ सबसे प्राचीन और जरथुस्त्र के मुंह से निकला हुआ माना जाता है। एक भाग का नाम 'यश्न' है, जो वैदिक 'यज्ञ' शब्द का रूपांतर मात्र है। जरथुस्त्र पारसी धर्म के संस्थापक थे। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। यह लगभग वही काल था, जबकि राजा सुदास का आर्यावर्त में शासन था और दूसरी ओर हजरत इब्राहीम अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। प्राचीन पारसी धर्म ईरान का राजधर्म था। इसके धर्मावलंबियों को पारसी या जोराबियन कहा जाता है। जरथुस्त्र ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुधधोवा (दोग्दों) था, जो कुंवारी थी। 30 वर्ष की आयु में जरथुस्त्र को ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई।ALSO READ: पाकिस्तान देगा ईरान को शाहीन-3 मिसाइलें
 
3. इस्लाम के पूर्व ईरान का राजधर्म पारसी धर्म था। ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी में एक महान पारसीक (प्राचीन ईरानवासी) साम्राज्य की स्थापना 'पेर्सिपोलिस में हुई थी जिसने 3 महाद्वीपों और 20 राष्ट्रों पर लंबे समय तक शासन किया। इस साम्राज्य का राजधर्म जरतोश्त या जरथुस्त्र के द्वारा 1700-1800 ईसापूर्व स्थापित, 'जोरोस्त्रियन' था और इसके करोड़ों अनुयायी रोम से लेकर सिन्धु नदी तक फैले थे।
 
4. 6ठी सदी के पूर्व तक पारसी समुदाय के लोग ईरान में ही रहते थे। 7वीं सदी में खलिफाओं के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति होने के बाद उनके बुरे दिन शुरू हुए। आठवीं शताब्दी में फारस अर्थात ईरान में सख्ती से इस्लामिक कानून लागू किया जाने लगा जिसके चलते बड़े स्तर पर धर्मान्तरण और लोगों को सजाएं दी जाने लगीं। ऐसे में लाखों की संख्‍या में पारसी समुदाय के लोग पूरब की ओर पलायन कर गए। 
 
5. 7वीं शताब्दी में तुर्कों और अरबों ने ईरान पर बर्बर आक्रमण किया और कत्लेआम की इंतहा कर दी। 'सॅसेनियन' साम्राज्य के पतन के बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा सताए जाने से बचने के लिए पारसी लोग अपना देश छोड़कर भागने लगे। इस्लामिक क्रांति के इस दौर में कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर पूर्वी भारत में बस गए। पहले वे संजान में बसे फिर दमण दीव, फिर गुजरात और इसके बाद मुंबई में बसे। कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईस्वी में दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए। पारसियों में कई महाना राजा, सम्राट और धर्मदूत हुए हैं लेकिन चूंकि पारसी अब अपना राष्ट्र ही खो चुके हैं तो उसके साथ उनका अधिकतर इतिहास भी खो चुका है। 
 
6. इस्लाम के उदय के बाद आदिवासियों को और अन्य आस्था के लोगों के लिए अपने अस्तित्व को बचा पाना आसान नहीं था। इस दौरान कई युद्ध भी हुए। तुर्क और अरबों की फतह के बाद ईरानियों ने शिया मुसलमान बनकर अपने वजूद को बचाया। अंततः एक पारसी देश शिया मुस्लिम बहुल देश बन गया। हालांकि सऊदी अरब वाले अब भी खुद को वास्तविक मुसलमान मानते हैं जबकि पारसी से मुस्लिम बने ईरान को गैर-मुस्लिम। अरब के लोग अन्य मुल्कों के गैर सुन्नी लोगों को मुसलमान नहीं मानते हैं। खासकर उन्होंने शियाओं को तो इस्लाम से खारिज ही कर दिया है।
 
7. कुछ वर्ष पूर्व ही सऊदी अरब के सबसे बड़े धर्मगुरु मुफ्ती अब्दुल अजीज अल-शेख ने घोषणा कर दी थी कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं। अब्दुल-अजीज सऊदी किंग द्वारा स्थापित इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन के चीफ हैं। उन्होंने कहा कि ईरानी लोग 'जोरोएस्ट्रिनिइजम' यानी पारसी धर्म के अनुयायी रहे हैं। उन्होंने कहा था, 'हम लोगों को समझना चाहिए कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं क्योंकि वे मेजाय (पारसी) के बच्चे हैं। इनकी मुस्लिमों और खासकर सुन्नियों से पुरानी दुश्मनी रही है।ALSO READ: लोहड़ी की तरह ईरान में मनाया जाता है चहारशंबे सूरी

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