इस सुरंग से पाताल लोक गए थे हनुमान जी?

अनिरुद्ध जोशी
सांकेतिक चित्र
नेशनल जियोग्राफिक के अनुसार, हाल ही में वैज्ञानिकों के एक समूह ( जिसका नेतृत्व कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिस्टोफर फिशर कर रहे थे।) ने एक ऐसी प्राचीन रहस्यमय शहर( सियुदाद ब्लांका आज का होंडुरास देश) की खोज की है, जिसका वर्णन भारतीय पौराणिक कथाओ में मिलता है।
 
हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार पवनपुत्र हनुमान अपने ईष्ट देव को अहिरावण के चंगुल से बचाने के लिए एक सुरंग मार्ग से 70 हजार योजन ( तक़रीबन 560 हजार किलोमीटर ) की गहराई में पाताल लोक पहुंचे थे।वेबदुनिया के शोधानुसार इस पौराणिक कथा के अनुसार पाताल लोक धरती के ठीक नीचे है। अगर मौजूदा वक्त में हम भारत से कोई सुरंग खोदना चाहें तो 560 हजार किलोमीटर लम्बी ये सुरंग अमेरिका महाद्वीप के होंडुरास नामक देश के आस-पास निकलेगी।
 
बहुत से जानकार इस शहर को वही पाताल लोक मान रहे हैं जहां राम भक्त हनुमान पहुंचे थे। और इस बात को बल देने के कई पुख्ता वजह भी है। हजारों साल पहले नष्ट हो चुकी सभ्यता में ठीक राम भक्त हनुमान जैसे दिखने वाली एक देवता की मूर्तियां मिली हैं। अब तक के प्राप्त अवशेषो में ऐसी कई मूर्तिया मिली है जिनमे हनुमान जी गुठने के बल बैठे है और हाथ में उनके गदा जैसा हथियार है जो भारत में मिलने वाली हनुमान जी की मूर्तियों से मिलती जुलती है।
 
इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन शहर सियुदाद ब्लांका के लोग एक विशालकाय वानर देवता की पूजा करते थे। जिससे इस बात को बल मिलता है, की कहीं हजारों साल पहले रामायण में वर्णित पाताल पुरी ही प्राचीन सियूदाद ब्लांका तो नहीं है। रामायण की कथा में पाताल पुरी का जिक्र तब आता है, जब मायावी अहिरावण भगवान श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण का हरण कर उन्हें अपने मायालोक पातालपुरी ले जाता है, तब हनुमान जी अहिरावण तक पहुंचने के लिए पातालपुरी के रक्षक मकरध्वजा को परास्त करना पड़ा था। रामकथा के अनुसार अहिरावण वध के बाद भगवान राम ने वानर रूप वाले मकरध्वजा को ही पातालपुरी का राजा बना दिया था, जिसे पाताल पुरी के लोग पूजने लगे थे। इस प्राचीन शहर की खोज अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने लीडर नामक तकनीक से की, जो जमीन के नीचे की 3-D मैपिंग दिखाती है।
 
इस शहर की पहली पुख्ता जानकारी 1940 में अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्डे ने एक अमेरिकी मैगजीन में दी थी। उस लेख में लिखा था की इस प्राचीन शहर के लोग एक वानर देवता की पूजा करते थे परन्तु लेख में उस स्थान का खुलासा नहीं किया गया था। कुछ समय बाद में रहस्यमय परिस्थितियों में खोजकर्ता थियोडोर की मौत हो गई जिससे प्राचीन शहर की खोज अधूरी रह गई।
 
इसके करीब 7 दशक बाद लाइडार तकनीक की मदद से होंडूरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नामक इलाके में प्राचीन शहर के निशान मिलने शुरू हुए हैं। अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग ने होंडूरास के जंगलों के ऊपर आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से प्राचीन शहर के निशान को खोज निकाला है।
 
लाइडार तकनीक की मदद से जो थ्री-डी नक्शे मिले है, उसका अध्ययन करने पर जमीन के नीचे एक प्राचीन शहर की मौजूदगी का पता चलता है साथ ही साथ जंगलों की जमीन की गहराइयों में मानव निर्मित कई वस्तुओ के भी साक्ष्य मिले है।
 
मकरध्वज कौन था?
उस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया, तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी थी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे। उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक बड़ी मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई।
 
एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र 'मकरध्वज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था, तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। हनुमानजी को देखकर मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
 
यहां है मकरध्वज का मंदिर और पाताल का रास्ता?
गुजरात के बेट द्वारका में एक हनुमान दंडी मंदिर है। मान्यता है कि यही से पाताललोक शुरु होता है। गुजरात के समुद्री तट पर स्थित बेट द्वारका से 4 मील की दूरी पर मकरध्वज के साथ में यहां हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी, परंतु अब दोनों मूर्तियां एक-सी ऊंची हो गई है।
 
अहिरावण ने भगवान श्रीराम-लक्ष्मण को इसी स्थान पर छिपाकर रखा था। जब हनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है।
 
हालांकि मकरध्वज का एक मंदिर राजस्थान के अजमेर से 50 किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर स्थित ब्यावर में भी है। माना जाता है कि ब्यावर के विजयनगर-बलाड़ मार्ग के मध्य स्थित यह मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल से बुलाकर तीर्थराज पुष्कर के निकट नरवर से दिवेर तक के प्रदेश का उन्हें अधिपति बना दिया था। उसी के अनुसार जहां पूर्व में मकरध्वज का सिंहासन था, उस पावन स्थल पर मकरध्वज बालाजी के विग्रह का प्राकट्य हुआ। उसी समय मेंहदीपुर से हनुमान बालाजी भी सविग्रह यहां पुत्र के साथ विराजमान हो गए। मान्यता है कि श्रीराम ने मकरध्वज को यह वरदान दिया कि कलियुग में वे जाग्रत देव के रूप में भक्तों के संकटों का निवारण करेंगे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी के दिन या कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन करते हैं?

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

आंवला नवमी कब है, क्या करते हैं इस दिन? महत्व और पूजा का मुहूर्त

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

सभी देखें

धर्म संसार

MahaKumbh : प्रयागराज महाकुंभ में तैनात किए जाएंगे 10000 सफाईकर्मी

10 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

10 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Tulsi vivah 2024: तुलसी विवाह के दिन आजमा सकते हैं ये 12 अचूक उपाय

Dev uthani gyaras 2024 date: देवउठनी देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि