महाकाल की नगरी का उज्जैन नाम कैसे पड़ा, जानिए अवंतिका नाम की रोचक जानकारी

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City of Mahakal:12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सबसे प्रमुख महाकाल बाबा मध्यप्रदेश के उज्जैन में विराजमान हैं। इसे महाकाल की नगरी उज्जैन कहा जाता है। कहते हैं कि उज्जैन के पहले इसका नाम अवंतिका था। पालिग्रंथों में इसका नाम उज्जैनी है, वहीं प्राकृत ग्रंथों में उजेनी मिलता है। बोधम्यन धर्मसूत्र में इसका अवन्ति नाम से उल्लेख मिलता है। वहीं, स्कंदपुराण में अवन्ति खण्ड के नाम से एक भाग प्रसिद्ध है। वाल्मीकिजी ने रामायण में इसे अवन्ति नाम से ही उल्लेखित किया है। रोमन इतिहासकार टॉलेमी इस स्थान का उल्लेख ओजन नाम से करता है। इसके अतिरिक्त इस नगर को सुवर्णश्रृंगार, कुशस्थली, अवन्तिका, अमरावत, चूड़ामणि, पद्मावती, शिवपुरी, कुमुद्वती आदि नामों से भी जाना जाता है। आओ जानते हैं उज्जैन और अवंतिका नाम का इतिहास।
 
 
उज्जैन : उज्जैन नाम सही नहीं है। यह तो उज्जयिनी का अपभ्रंश है। असली नाम उज्जयिनी है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है विजेता या जयनगरी। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीनकाल में ब्रह्मा से वरदान प्राप्त त्रिपुर नामक असुर जब देवताओं को परेशान करने लगा तब सभी देवताओं ने शिवजी के कहने पर रक्तदन्तिका चण्डिका देवी की अराधना की। देवी ने प्रसन्न होकर महादेव को महापाशुपतास्त्र दिया। इस अस्त्र के महादेव ने मायावी त्रिपुर को तीन खण्डों में काट दिया। इस प्रकार त्रिपुर को उज्जिन किया गया। उज्जिन अर्थात पराजित किया गया। इस प्रकार इस स्थान का नाम उज्जयिनी पड़ा।
 
अवंतिका : कहते हैं कि ईशान कल्प में जब देवताओं को असुरों ने पराजित कर दिया तब सभी देवता सुमेरु शिखर पर सिमट कर रह गए। वहीं उन्हें एक आकाशवाणी सुनाई दी कि वे सभी कुशीस्थल जाएं, वहीं उनकी समस्या का समाधान होगा। 
 
आकाशवाणी के अनुसार सभी देवता कुशीस्थल गए और उन्होंने वहां देखा कि सभीजन सदाचारी है, ॠषि और गंधर्व तपस्या में लीन रहते हैं। चारों ओर सुख, समृद्धि और शान्ति है। वहां सभी देवताओं ने तीर्थ लाभ लेकर स्नानादि किया जिसके चलते वे सभी विगत कल्मष हुए तथा पुनः स्वर्ग को प्राप्त कर सके। कहते हैं कि प्रत्येक कल्पों में यह स्थान देवता, तीर्थ, औधषि तथा प्राणियों का रक्षण (अपन) करती आई है। अतः इसे अवंति के नाम से जाना गया।

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