दक्ष प्रजापति क्यों नहीं चाहते थे कि सती का विवाह शिव से हो, पढ़िये 2 पौराणिक कथा

अनिरुद्ध जोशी
पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे, जो कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। दक्ष की ये सभी कन्याएं, देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी आदि कहलाईं। उक्त कन्याओं और इनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं।
 
 
पहली कथा
दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ किया था। दक्ष की इन 27 कन्याओं में रोहिणी सबसे अधिक सुन्दर थीं। यही कारण था कि चंद्रदेव उसे ज्यादा प्यार करते थे और अन्य 26 पत्नियों की उपेक्षा हो जाती थी। यह बात जब राजा दक्ष को पता चली तो उन्होंने चंद्रदेव को आमंत्रित करके उन्हें विनम्रता पूर्वक इस अनुचित भेदभाव के प्रति चंद्रदेव को सर्तक किया। चंद्रदेव ने वचन दिया कि वो भविष्य में ऐसा भेदभाव नहीं करेंगे।
 
 
परन्तु चंद्रदेव ने अपना भेदभावपूर्ण व्यव्हार जारी रखा। दक्ष की कन्याएं क्या करती, उन्होंने पुनः अपने पिता को इस संबंध में दुखी होकर बताया। इस बार दक्ष ने चंद्रलोक जाकर चंद्रदेव को समझाने का निर्णय लिया। दक्ष प्रजापति और चंद्रदेव की बात इतना बढ़ गयी कि अंत में क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रदेव को कुरूप होने का श्राप दे दिया।
 
श्राप के चलते दिन-प्रतिदिन चन्द्रमा की सुन्दरता और तेज घटने लगा। एक दिन नारद मुनि चन्द्रलोक पहुंचे तो चन्द्रमा ने उनसे इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। नारदमुनि ने चन्द्रमा से कहा कि वो श्राप मुक्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करें। चंद्रमा ने ऐसा ही किया और शिव ने उन्हें श्रापमुक्त कर दिया।
 
 
कुछ दिन बाद नारद मुनि घूमते हुए दक्ष के दरबार में पहुंचे और उन्होंने चंद्रमा की श्रापमुक्ति के बारे में उन्हें बताया। दक्ष को बड़ा क्रोध आया और वे शिव से युद्ध करने कैलाश पर्वत पहुंच गए। शिव और दक्ष का युद्ध होने लगा। इस युद्ध को रोकने के लिए ब्रह्मा और भगवान विष्णु वहां पहुंचे और दोनों को शांत कराया। 
 
दूसरी कथा
कहते हैं कि शिव को औघड़ जानकर दक्ष सती का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे अत: उन्होंने सती के स्वयंवर करने का निर्णय लिया। दक्ष ने सभी गंधर्व, यक्ष, देव को आमंत्रित किया, लेकिन शिव को नहीं। कहते हैं कि शिवजी का अपमान करने के लिए उन्होंने शिवजी की मूर्ति बनाकर द्वार के निकट लगा दी थी।
 
 
स्वयंवर के समय जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने जाकर उसी शिवमूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। तभी शिवजी तत्क्षण वहीं प्रकट हो गए। भगवान शिव ने सती को पत्नी रूप में स्वीकार किया और कैलाशधाम चले गए। इस पर दक्ष बहुत कुपित हुए।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Hanuman Jayanti 2024: हनुमानजी के इन खास 5 मंत्रों से शनि, राहु और केतु की बाधा से मिलेगी मुक्ति

Hanuman Jayanti 2024: हनुमानजी सशरीर हैं तो वे अभी कहां हैं?

Hanuman jayanti : हनुमान जयंती पर इन 4 राशियों पर रहेगी अंजनी पुत्र की विशेष कृपा, व्यापार और नौकरी में होगी तरक्की

Atigand Yog अतिगंड योग क्या होता है, बेहद अशुभ और कष्टदायक परन्तु इन जातकों की बदल देता है किस्मत

Shukra Gochar : प्रेम का ग्रह शुक्र करेगा मंगल की राशि मेष में प्रवेश, 4 राशियों के जीवन में बढ़ जाएगा रोमांस

Aaj Ka Rashifal: आज किसे मिलेगी हर क्षेत्र में सफलता, जानें अपना भविष्‍यफल (24 अप्रैल 2024)

24 अप्रैल 2024 : आपका जन्मदिन

24 अप्रैल 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Akhand Samrajya Yoga: अखंड साम्राज्य योग क्या होता है, मां लक्ष्मी की कृपा से बदल जाता है भाग्य

Mangal gohchar : मंगल का मीन राशि में गोचर, 5 राशियों को होगा बहुत फायदा

अगला लेख