ऐसे जन्मे राजा सगर के साठ हजार पुत्र

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर भगीरथ और श्रीराम के पूर्वज हैं। राजा सगर की 2 रानियां थीं- केशिनी और सुमति। जब दीर्घकाल तक दोनों पत्नियों को कोई संतान नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे।

तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को 60 हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा। वंशधर अर्थात जिससे आगे वंश चलेगा।

अगले पन्ने पर जानिए फिर क्या हुआ...


बाद में रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। वह सिर्फ एक बेजान पिंड था। राजा सगर निराश होकर उसे फेंकने लगे, तभी आकाशवाणी हुई- 'सावधान राजा! इस तूंबी में 60 हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में 60 हजार पुत्र प्राप्त होंगे।'

राजा सागर ने इस आकाशवाणी को सुनकर इसे विधाता का विधान मानकर वैसे ही सुरक्षित रख लिया जैसा कहा गया था। समय आने पर उन मटकों से 60 हजार पुत्र उत्पन्न हुए।

लेकिन क्यों मारे गए राजा सगर के 60 हजार पुत्र...

जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने 60 हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।

राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली, राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।

संकलन : shatayu
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