संकट की इस घड़ी में रामभक्त श्रीहनुमानजी ने कहा कि मैं संजीवनी लेकर आता हूं। राम की आज्ञा पाकर हनुमानजी वायु की गति से हिमालय की ओर उड़े। रास्ते में उन्होंने याकू नामक ऋषि का आश्रम देखा, जहां ऋषि एक पहाड़ी पर रहते थे।
हनुमानजी ने सोचा ऋषि से संजीवनी का सही पता पूछ लिया जाए। यही सोचकर वे उस पहाड़ी पर उतरे लेकिन जिस समय वे पहाड़ी पर उतरे उस समय पहाड़ी उनके भार को सहन नहीं कर पाई और पहाड़ी आधी भूमि में धंस गई।
हनुमानजी ने ऋषि को नमन कर संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की तथा ऋषि को वचन दिया कि संजीवनी लेने के बाद जाते वक्त आपके आश्रम में पुन: जरूर आऊंगा।
आगे पढ़ें, लेकिन संजीवनी लाने के बाद आते वक्त रास्ते में एक घटना घटी...
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