दानवों का राजा मय दानव

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असुरों में श्रेष्ठ कई असुर हुए उनमें मय दानव का नाम भी लिया जाता है। आपने विश्वकर्मा का नाम तो सुना होगा, जो देवताओं के वास्तुकार थे उसी तरह मय दानव हर तरह की रचना करना जानता था। राजा बलि रसातल तो मय दानव तलातल का राजा था। सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। मय विषयों का परम गुरु है।

विश्वकर्मा देवों के तो मय दानव दैत्यों का वास्तुकार माना जाता था। मय दानव रावण का ससुर था। मय दानव के पास एक विमान रथ था जिसका परिवृत्त 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिए लगे थे। इस विमान का उपयोग उसने देव-दानवों के युद्ध में किया था। देव- दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है, जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं।

अगले पन्ने पर मय दानव द्वारा निर्मित प्रसिद्ध नगर...


महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नामक नगर की रचना की थी।

खांडव वन के दहन के समय अर्जुन ने मय दानव को अभयदान दे दिया था। इससे कृतज्ञ होकर मय दानव ने अर्जुन से कहा, 'हे कुन्तीनंदन! आपने मेरे प्राणों की रक्षा की है अतः आप आज्ञा दें, मैं आपकी क्या सेवा करूं?'

अर्जुन ने उत्तर दिया, 'मैं किसी बदले की भावना से उपकार नहीं करता, किंतु यदि तुम्हारे अंदर सेवा भावना है तो तुम श्रीकृष्ण की सेवा करो।'

मयासुर के द्वारा किसी प्रकार की सेवा की आज्ञा मांगने पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा, 'हे दैत्यश्रेष्ठ! तुम युधिष्ठिर की सभा हेतु ऐसे भवन का निर्माण करो जैसा कि इस पृथ्वी पर अभी तक न निर्मित हुआ हो।'

मयासुर ने कृष्ण की आज्ञा का पालन करके एक अद्वितीय नगर और उस नगर में एक भवन का निर्माण कर दिया। इसके साथ ही उसने पाण्डवों को देवदत्त शंख, एक वज्र से भी कठोर रत्नजटित गदा तथा मणिमय पात्र भी भेंट किया।

यह भी कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर भी मय दानव ने बनाया और बसाया था।

सवाल यह है कि रामायण काल के मय दानव का महाभारत काल में होना कैसे संभव है। पुराणों अनुसार पाताल लोक के ‍निवासियों की उम्र हजारों वर्ष की होती है।
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